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A, B,O+ ...किस ब्लड ग्रुप वालों को कोरोना का खतरा अधिक? ओमीक्रोन के खतरे के बीच आई यह रिपोर्ट.... https://ift.tt/3peN62P

November 30, 2021
नई दिल्ली पूरे विश्व में कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमीक्रोन (New Variant Omicron Update) के कारण हड़कंप मचा हुआ है। तमाम देशों ने ट्रेवल एडवाइजरी (Omicron Travel Advisory) जारी कर यात्रा में प्रतिबंध लागू कर दिए गए हैं। इसी बीच दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में एक रिसर्च हुई है, जिससे पता चला है कि A, B और RH + ब्लड ग्रुप वाले लोगों कोरोना के जद में जल्दी आते हैं और AB, O और RH- ब्लड ग्रुप वाले लोगों में संक्रमण का खतरा बहुत कम होता है। सर गंगा राम में रिसर्चसर गंगा राम (Sir Ganga Ram Study On Coronavirus) अस्पताल में 8 अप्रैल, 2020 और 4 अक्टूबर, 2020 के बीच 2,586 कोविड -19 सकारात्मक रोगियों का अध्ययन किया गया। ये सभी रोगी कोरोना वायरस से पीड़ित थे। अस्पताल के डॉक्टर और विशेषज्ञों ने इस बात को जानने की कोशिश की कि आखिरकार किस ब्लड ग्रुप के लोगों को कोरोना ने जल्दी जद में ली। रिकवरी में लगने वाले समय और मृत्यु दर की जांच गंगाराम अस्‍पताल की डॉ. रश्मि राणा ने बताया कि सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोनावायरस 2 का एक नया वायरस है। ब्‍लड ग्रुप का कोविड-19 जोखिम या प्रगति पर कोई प्रभाव पड़ता है या नहीं, इसलिए, हमने इस अध्ययन में एबीओ और आरएच ब्लड ग्रुप के साथ कोविड-19 की संवेदनशीलता, इसके निदान और रिकवरी में लगने वाले समय और मृत्यु दर की जांच की। 21 नवंबर के अंक में प्रकाशित हुई रिसर्चरक्त आधान विभाग के सह-लेखक और अध्यक्ष डॉ विवेक रंजन ने बताया कि रक्त समूह बी वाले पुरुष रोगियों में समान रक्त समूह वाली महिला रोगियों की तुलना में वायरस का खतरा अधिक पाया गया और रक्त समूह एबी पाया गया। 60 वर्ष से कम आयु के रोगियों में संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील होने के लिए। ये अध्ययन के निष्कर्ष फ्रंटियर्स इन सेल्युलर एंड इंफेक्शन माइक्रोबायोलॉजी के 21 नवंबर के अंक में प्रकाशित हुए थे। इन ब्लड ग्रुप्स में रिकवरी सबसे तेजवहीं डॉ. विवेक रंजन ने बताया कि बी+ पुरुष रोगियों को महिला रोगियों की तुलना में कोविड-19 का खतरा अधिक है। ग्रुप बी और ब्लड ग्रुप एबी को 60 वर्ष आयु वर्ग के रोगियों में संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील पाया गया। डॉ विवेक बोले, हमारे अध्ययन में यह भी पाया गया कि ब्लड ग्रुप ए और आरएच+ के मरीजों में रिकवरी अवधि में कमी पाई गई, जबकि ब्लड ग्रुप ओ और आरएच- में रिकवरी अवधि में वृद्धि मिली।


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बीते 5 साल में 6 लाख से ज्यादा लोगों ने छोड़ी भारतीय नागरिकता, सबसे ज्यादा आवेदन पाकिस्तान से https://ift.tt/3llOgZl

November 30, 2021
नयी दिल्ली पिछले पांच वर्षों में छह लाख से अधिक भारतीय नागरिकों ने नागरिकता छोड़ दी। सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में यह जानकारी दी। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि विदेश मंत्रालय के पास उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, 1,33,83,718 भारतीय नागरिक दूसरे देशों में रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2017 में 1,33,049 नागरिकों ने, 2018 में 1,34,561 लोगों ने, साल 2019 में 1,44,017 लोगों ने, 2020 में 85,248 लोगों ने और 2021 में गत 30 सितंबर तक 1,11,287 भारतीय नागरिकों ने अपनी नागरिकता छोड़ी। नागरिकता के आवेदनगृह राज्यमंत्री ने मंगलवार को लोकसभा को बताया कि इसी तरह बीते पांच सालों में 10,645 लोगों ने भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। इनमें से 4177 को यह प्रदान की गई। नागरिकता पाने का आवेदन करने वालों में 227 अमेरिका के, 7782 पाकिस्तान के, 795 अफगानिस्तान के और 184 बांग्लादेश के हैं।मंत्री राय ने बताया कि वर्ष 2016 में 1106 लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई। वहीं 2017 में 817 को, 2018 में 628 को, 2019 में 987 को और 2020 में 639 को देश की नागरिकता दी गई। कितने लोगों के मिली भारतीय नागरिकतासबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि भारतीय नागरिकता के लिए सबसे ज्यादा आवेदन पाकिस्तान से आए। उन्होंने बताया कि अमेरिका से 227 लोगों के आवेदन, अफगानिस्तान से 795 और बांग्लादेश से 184 लोगों के भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन आए हैं। इसके अलावा सरकार ने सदन में जानकारी देते हुए बताया कि साल 2016 में 1,106 लोगों को, 2017 में 818 लोगों को, 2018 में 628 लोगों को, 2019 में 987 लोगों को और 2020 में 639 लोगों को नागरिकता दी गई।


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बीते 5 साल में 6 लाख से ज्यादा लोगों ने छोड़ी भारतीय नागरिकता, सबसे ज्यादा आवेदन पाकिस्तान से https://ift.tt/3llOgZl बीते 5 साल में 6 लाख से ज्यादा लोगों ने छोड़ी भारतीय नागरिकता, सबसे ज्यादा आवेदन पाकिस्तान से
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ओमीक्रोन से लड़ने के लिए क्या पड़ेगी बूस्टर डोज की जरूरत? केंद्र ने दिया संसद में जवाब https://ift.tt/3pbHO8c

November 30, 2021
नई दिल्ली कोविड-19 के नए स्वरूप ‘ओमीक्रोन’ (Omicron) के मद्देनजर देश में कोविड रोधी टीकों ( Corona Vaccine) की बूस्टर खुराक ( ) लोगों को देने की उठ रही मांगों के बीच केंद्र सरकार ने मंगलवार को संसद( Parliament) को बताया कि इस बारे में विशेषज्ञ समूह विचार-विमर्श कर रहे हैं। राज्यसभा( Rajya Sabha) में एक सवाल के लिखित जवाब में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री ( MoS State ) ने कहा कि कुछ देश कोविड टीके की बूस्टर खुराकें ( Doses) प्रदान कर रहे हैं लेकिन, भारत में इसकी आवश्यकता पर अभी विमर्श जारी है। उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रीय टीकाकरण तकनीकी सलाहकार समूह (NTAGI) और राष्ट्रीय कोविड-19 टीकाकरण विशेषज्ञ समूह (NEGVAC)) बूस्टर खुराक की आवश्यकता व औचित्य के साथ-साथ कोविड-19 टीकों( Covid-19 Vaccines) की खुराक अनुसूची से संबंधित वैज्ञानिक प्रमाणों पर विचार- विमर्श और सलाह कर रहे हैं।" गौरतलब है कि, दक्षिण अफ्रीका में कोरोना वायरस ( ) के नए स्वरूप ‘ओमीक्रोन’ की पहचान की गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसे बेहद संक्रामक बताया है। इसके मद्देनजर कई देशों ने अफ्रीकी देशों से आवाजाही पर प्रतिबंध लगाए हैं और बचाव के तहत अन्य कदम उठाए हैं। इसके फैलने को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने मंगलवार को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ एक समीक्षा बैठक की और उन्हें मामलों की शीघ्र पहचान और प्रबंधन के लिए जांच बढ़ाने की सलाह दी।


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ओमीक्रोन से लड़ने के लिए क्या पड़ेगी बूस्टर डोज की जरूरत? केंद्र ने दिया संसद में जवाब https://ift.tt/3pbHO8c ओमीक्रोन से लड़ने के लिए क्या पड़ेगी बूस्टर डोज की जरूरत? केंद्र ने दिया संसद में जवाब
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ओमीक्रोन: सरकार ने कोविड-19 रोकथाम उपायों की अवधि 31 दिसंबर तक बढ़ाई https://ift.tt/318Al1U

November 30, 2021
नयी दिल्ली केंद्र ने कुछ देशों में कोरोना वायरस के अत्यधिक संक्रामक रूप ओमीक्रोन (Omicron Virus) के उभरने के मद्देनजर मंगलवार को देशव्यापी कोविड-19 रोकथाम उपायों की अवधि 31 दिसंबर तक बढ़ा दी और राज्यों को सतर्क रहने को कहा। केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 25 नवंबर को जारी किये गए परामर्श का सख्ती से पालन करने के लिए कहा। इस परामर्श में सभी अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की कड़ी निगरानी और जांच की सिफारिश की गई है। भल्ला ने यह भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाकर स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार उनकी जांच की जानी चाहिए। साथ ही. भारतीय सार्स-कोव-2 जीनोम समूह के दस्तावेज (आईएनएसएसीओजी) के अनुसार ऐसे यात्रियों के नमूनों को तुरंत प्रयोगशालाओं में भेजा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्यों के निगरानी अधिकारियों को जीनोम विश्लेषण के परिणामों में तेजी लाने के लिए जीनोम प्रयोगशालाओं के साथ बेहतर समन्वय स्थापित करना चाहिए, और राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों को चिंताजनक स्वरूपों की मौजूदगी के बारे में पता चलने पर तुरंत आवश्यक सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय करने चाहिए। गृह सचिव ने निर्देश दिया कि मौजूदा कोविड -19 रोकथाम उपायों को 31 दिसंबर तक जारी रखा जाना चाहिए। इसके अलावा मंगलवार को केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ समीक्षा बैठक की और उन्हें मामलों की जल्द पहचान करने और उनसे निपटने के लिए जांच तेज करने की सलाह दी। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, भूषण ने कहा कि कि नया स्वरूप आरटी-पीसीआर और आरएटी परीक्षणों से बच नहीं सकता। उन्होंने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पर्याप्त बुनियादी ढांचा सुनिश्चित करने और क्वारंटीन में रह रहे लोगों की निगरानी करने का निर्देश दिया। स्वास्थ्य मंत्रालय के मंगलवार को जारी आंकड़े के अनुसार भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के 6,990 नए मामले सामने आने के बाद संक्रमितों की कुल संख्या 3,45,87,822 हो गई। 1,00,543 कोरोना मरीजों का उपचार हो रहा है। इसके अलावा 190 और रोगियों की मौत के साथ मृतकों की संख्या 4,68,980 पर पहुंच गई है।


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ओमीक्रोन: सरकार ने कोविड-19 रोकथाम उपायों की अवधि 31 दिसंबर तक बढ़ाई https://ift.tt/318Al1U ओमीक्रोन: सरकार ने कोविड-19 रोकथाम उपायों की अवधि 31 दिसंबर तक बढ़ाई
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देश में दैनिक नए कोरोना मामलों में गिरावट जारी, महज 6,990 नए मामलों के साथ बना 551 दिनों का रिकॉर्ड https://ift.tt/3xCFrir

November 30, 2021
नई दिल्ली देश में डेली नए कोरोना केस लगातार घट रहे हैं। मंगलवार को सिर्फ 6,990 नए संक्रमित सामने आए। यह संख्या 551 दिनों में सबसे कम है। इन मामलों के साथ ही देश में कोरोना वायरस के संक्रमितों की संख्या बढ़कर 3,45,87,822 हो गई। वहीं, उपचाराधीन मरीजों की संख्या घटकर 1,00,543 हो गई, जो 546 दिन में सबसे कम है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से मंगलवार की सुबह आठ बजे जारी किए गए ताजा आंकड़ों के अनुसार, संक्रमण से 190 और लोगों की मौत के बाद मृतक संख्या बढ़कर 4,68,980 हो गई। देश में लगातार 53 दिन से कोविड-19 के दैनिक मामले 20 हजार से कम हैं और 155 दिन से 50 हजार से कम दैनिक मामले सामने आ रहे हैं। उपचाराधीन मरीजों की संख्या घटकर 1,00,543 हो गयी है, जो संक्रमण के कुल मामलों का 0.29 प्रतिशत है। पिछले 24 घंटों में कोविड-19 के उपचाराधीन मरीजों की संख्या में 3,316 की कमी दर्ज की गयी है। मरीजों के ठीक होने की राष्ट्रीय दर 98.35 प्रतिशत है, जो मार्च 2020 के बाद से सर्वाधिक है। आंकड़ों के अनुसार, दैनिक संक्रमण दर 0.69 प्रतिशत दर्ज की गयी, जो पिछले 57 दिन से दो प्रतिशत से कम है। साप्ताहिक संक्रमण दर 0.84 प्रतिशत दर्ज की गयी, जो पिछले 16 दिन से एक प्रतिशत से कम है। देश में अभी तक कुल 3,40,18,299 लोग संक्रमण मुक्त हो चुके हैं और कोविड-19 से मृत्यु दर 1.36 प्रतिशत है। राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान के तहत अभी तक कोविड-19 रोधी टीकों की 123.25 करोड़ से अधिक खुराक दी जा चुकी है। देश में पिछले साल सात अगस्त को संक्रमितों की संख्या 20 लाख, 23 अगस्त को 30 लाख और पांच सितंबर को 40 लाख से अधिक हो गई थी। वहीं, संक्रमण के कुल मामले 16 सितंबर को 50 लाख, 28 सितंबर को 60 लाख, 11 अक्टूबर को 70 लाख, 29 अक्टूबर को 80 लाख और 20 नवंबर को 90 लाख के पार चले गए थे। देश में 19 दिसंबर को ये मामले एक करोड़ के पार, इस साल चार मई को दो करोड़ के पार और 23 जून को तीन करोड़ के पार चले गए थे। मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश में पिछले 24 घंटे में जिन 190 लोगों की संक्रमण से मौत हुई, उनमें से केरल के 117 और महाराष्ट्र के 21 लोग थे। केरल सरकार ने सोमवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि राज्य में मौत के 117 मामलों में से 59 पिछले कुछ दिनों में सामने आए। वहीं, मौत के 58 मामलों को केन्द्र तथा उच्चतम न्यायालय के नए दिशा-निर्देशों के आधार पर कोविड-19 से मौत के मामलों में जोड़ा गया है। आंकड़ों के अनुसार, देश में अभी तक संक्रमण से 4,68,980 लोगों की मौत हुई है, जिनमें से महाराष्ट्र के 1,40,962 लोग, केरल के 39,955 लोग, कर्नाटक के 38,203 लोग, तमिलनाडु के 36,472 लोग, दिल्ली के 25,098 लोग, उत्तर प्रदेश के 22,910 लोग और पश्चिम बंगाल के 19,473 लोग थे। स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि अभी तक जिन लोगों की कोरोना वायरस संक्रमण से मौत हुई है, उनमें से 70 प्रतिशत से ज्यादा मरीजों को अन्य बीमारियां भी थीं। मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर बताया कि उसके आंकड़ों का भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के आंकड़ों के साथ मिलान किया जा रहा है।


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देश में दैनिक नए कोरोना मामलों में गिरावट जारी, महज 6,990 नए मामलों के साथ बना 551 दिनों का रिकॉर्ड https://ift.tt/3xCFrir देश में दैनिक नए कोरोना मामलों में गिरावट जारी, महज 6,990 नए मामलों के साथ बना 551 दिनों का रिकॉर्ड
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समलैंगिक विवाह याचिकाओं पर सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग की मांग, दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब https://ift.tt/3xDOM9G

November 30, 2021
नई दिल्ली दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकरी की राय मांगी है कि क्या वह विशेष, हिंदू और विदेशी विवाह कानूनों (Special, Hindu and Foreign Marriages Acts) के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने संबंधी याचिकाओं पर कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग के पक्ष में है। हाई कोर्ट में याचिक के जरिए लाइव स्ट्रीमिंग की मांग की गई है। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने केंद्र के वकील को इस मुद्दे पर निर्देश लेने और जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया और मामले को आगे की सुनवाई के लिए तीन फरवरी को सूचीबद्ध किया। अदालत कई समलैंगिक जोड़ों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें विशेष, हिंदू और विदेशी विवाह कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध किया गया है। कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने दलीली दी कि इसमें शामिल अधिकारों को देखते हुए, कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग आवश्यक है क्योंकि यह देश की कुल आबादी के सात से आठ प्रतिशत से संबंधित है। वकील ने कहा कि यह राष्ट्रीय महत्व का मामला है और लाइव स्ट्रीमिंग एक बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व कर सकती है। हाई कोर्ट ने दो अलग-अलग याचिकाओं पर भी नोटिस जारी किया और केंद्र से जवाब मांगा। इनमें से एक याचिका दो महिलाओं द्वारा दायर की गई है, जिन्होंने पहले ही विदेश में अपनी शादी की है और यहां मान्यता की मांग की है और दूसरी याचिका एक ट्रांसजेंडर द्वारा दायर की गई है, जिसकी लिंग परिवर्तन सर्जरी हुई है।


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समलैंगिक विवाह याचिकाओं पर सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग की मांग, दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब https://ift.tt/3xDOM9G समलैंगिक विवाह याचिकाओं पर सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग की मांग, दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
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राष्ट्रीय फलक पर ममता बनर्जी की प्लानिंग, क्या कांग्रेस का विकल्प बनना TMC के लिए आसान है? https://ift.tt/3E7GKsi

November 30, 2021
नई दिल्‍ली तृणमूल कांग्रेस (TMC)की राष्‍ट्रीय स्‍तर पर पैठ जमाने की कोशिशें कांग्रेस के लिए चिंता का सबब हैं। ममता बनर्जी के नेतृत्‍व में TMC लगातार कांग्रेस को नजरअंदाज कर रही है। फिर चाहे वह विपक्ष की बैठकें हों या कांग्रेस के नेतृत्‍व वाले आयोजनों से दूरी, तृणमूल ने अपनी मंशा साफ कर दी है। कांग्रेस के हाथों में विपक्ष का नेतृत्‍व उसे स्‍वीकार नहीं है। ममता लगातार अन्‍य विपक्षी दलों के नेताओं से मिल रही हैं और अपने पासे फेंक रही हैं। पिछले दिनों वह दिल्‍ली में थीं। इस दौरान उन्‍होंने कांग्रेस नेताओं से दूरी बनाए रखी। MVA के नेताओं से मिलेंगी ममतामंगलवार से ममता तीन दिनों के लिए मुंबई में हैं। यहां उनका मुख्‍यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और एनसीपी के दिग्‍गज शरद पवार से म‍िलने का कार्यक्रम है। हालांकि बाद में खबर आई कि उद्धव खराब तबीयत के चलते ममता से नहीं मिल पाएंगे। पवार से बातचीत में बीजेपी का मुकाबला किस तरह किया जाए, इसपर जरूर बात होगी। मगर लाख टके का सवाल यह है कि तृणमूल कांग्रेस के लिए कांग्रेस का विकल्‍प बनना कितना आसान है? क्‍यों अहम होने वाली हैं ये मुलाकातें?शिवसेना और एनसीपी ने महाराष्‍ट्र में कांग्रेस के साथ मिलकर महा विकास आघाडी (MVA) बनाया है। इस गठबंधन के दो दलों के नेताओं से ममता की मुलाकात तय है, मगर कांग्रेस के साथ हीं। TMC और कांग्रेस के बीच बढ़ती दूरियों के बीच अगर ममता MVA के बाकी दो दलों से मुलाकात करती हैं तो संदेश साफ जाएगा। कांग्रेस, लेफ्ट को छोड़ बाकी विपक्षी दलों से TMC लगातार संपर्क कर रही है। 'दिल्‍ली आऊं तो सोनिया से मिलूं, जरूरी तो नहीं'पिछले हफ्ते ममता दिल्‍ली में थीं। बुधवार (24 नवंबर) को उन्‍होंने साफ किया वे कांग्रेस की अंतरिम अध्‍यक्ष सोनिया गांधी से नहीं मिलेंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद पत्रकारों ने उनसे सोनिया से मुलाकात को लेकर सवाल किया था। जवाब आया, 'इस बार मैंने केवल प्रधानमंत्री से समय मांगा था। सारे नेता पंजाब चुनाव को लेकर व्‍यस्‍त हैं। काम पहले... हम हर बार सोनिया से क्‍यों मिलें? यह संवैधानिक बाध्‍यता तो नहीं है।' ममता और सोनिया के रिश्‍ते गर्मजोशी भरे रहे हैं मगर हाल के दिनों में दोनों पार्टियों के रिश्‍ते तल्‍ख होते गए हैं। कैसे बिगड़ते गए TMC-कांग्रेस के रिश्‍ते?पिछले साल तक तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के संबंध मधुर तो नहीं, पर ठीक जरूर थे। फिर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी के नेतृत्‍व में TMC ने बीजेपी को रोककर दिखाया और स्थितियां बदलने लगीं। कई राजनीतिक पंड‍ितों ने लिखा कि ममता के रूप में विपक्ष को मोदी का मुकाबला करने लायक चेहरा मिल गया है। इसी बीच, कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया। इनमें गोवा के पूर्व सीएम लुईजिन्हो फलेरो और ऑल इंडिया महिला कांग्रेस की पूर्व अध्‍यक्ष सुष्मिता देव का नाम शामिल हैं। दोनों को TMC ने पश्चिम बंगाल से राज्‍यसभा भेजा। कांग्रेस के ही कीति आजाद और राहुल गांधी के करीबी रहे अशोक तंवर ने भी हाल में TMC जॉइन कर ली है। कांग्रेस को ताजा झटका मेघालय में लगा जहां उसके 17 में से 12 विधायक, जिनमें पूर्व सीएम मुकुल संगमा भी शामिल हैं, TMC में शामिल हो गए। कांग्रेस से दूरी बनाकर चल रही तृणमूलTMC ने बार-बार संकेत दिए हैं कि उसे कांग्रेस का नेतृत्‍व स्‍वीकार नहीं। संसद के शीतकालीन सत्र से पहले कांग्रेस की ओर से बुलाई गई बैठक में तृणमूल के नेता शरीक नहीं हुए। सोनिया गांधी के नेतृत्‍व में कांग्रेस ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए प्रदर्शन किया। TMC ने उससे दूरी बनाते हुए अपना अलग प्रदर्शन किया। इससे पहले भी विपक्ष की बैठकों से TMC नदारद रही है। सोनिया और ममता की आखिरी मुलाकात जुलाई में हुई थी। विस्‍तार के मूड में है TMCममता बनर्जी ने दिल्‍ली दौरे पर कहा था कि TMC के विस्‍तार की योजनाएं बन रही हैं। ममता ने पिछले हफ्ते पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी जाने के भी संकेत दिए थे। यूपी के पूर्व सीएम कमलापति त्रिपाठी के पोते राजेशपति त्रिपाठी और पड़पोते ललितेशपति त्रिपाठी अक्‍टूबर में TMC का हिस्‍सा बने थे। ममता ने कहा है कि वह समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की मदद को तैयार हैं। TMC चीफ ने एक अहम बयान में यह भी कहा था कि उनकी पार्टी ने गोवा में शुरुआत कर दी है, क्षेत्रीय दलों को भी कुछ राज्‍यों में बीजेपी को हराने की तैयारी करनी चाहिए। TMC 2022 में गोवा का विधानसभा चुनाव लड़ेगी। पिछले दिनों जब ममता गोवा गई थीं तो टेनिस स्‍टार लिएंडर पेस समेत कई मशहूर हस्तियां TMC में शामिल हुईं। कांग्रेस का विकल्‍प बन पाना है आसान?TMC जिस रास्‍ते पर है, उसमें कांग्रेस को हटाकर ही आगे बढ़ना होगा। हालांकि पार्टी की बंगाल से इतर बाकी राज्‍यों में उतनी धमक नहीं है। त्रिपुरा में हाल ही में हुए निकाय चुनावों में पार्टी को झटका लगा है। यहां की 334 सीटों में से बीजेपी 329 सीटें जीत गई जबकि TMC को मात्र एक सीट मिली। गोवा में ताल ठोकने जा रही TMC को राष्‍ट्रीय स्‍तर पर विपक्ष का नेतृत्‍व करने के लिए अभी कड़ी मेहनत करनी होगी। ममता देश की इकलौती महिला मुख्‍यमंत्री हैं और विपक्ष उनमें 2007 की मायावती देख रहा है। तब यूपी का विधानसभा चुनाव जीतीं मायावती को भी प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार बताया जाने लगा था। ये बात दीगर है कि 2012 के बाद से मायावती की ताकत फिर यूपी तक ही सिमट कर रह गई है।


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राष्ट्रीय फलक पर ममता बनर्जी की प्लानिंग, क्या कांग्रेस का विकल्प बनना TMC के लिए आसान है? https://ift.tt/3E7GKsi राष्ट्रीय फलक पर ममता बनर्जी की प्लानिंग, क्या कांग्रेस का विकल्प बनना TMC के लिए आसान है?
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मेट्रो पुरानी, अंदाज नयाः देखिए एकदम नए लुक में नजर आएंगी पुरानी मेट्रो ट्रेनें https://ift.tt/3o3QmhZ

November 30, 2021
दिल्ली मेट्रो के पहले फेज में 2002 से 2007 के बीच खरीदी गई पुरानी ट्रेनें जल्द ही बिल्कुल नए रूप में नजर आएंगी। नवीनीकरण की एक विशेष प्रक्रिया के तहत डीएमआरसी ऐसी 70 ट्रेनों को नया रूप दे रही है। यह काम चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा। पहले चरण में 10 ट्रेनों का नवीनीकरण किया जा रहा है। इनमें से 7 ट्रेनों को यमुना बैंक डिपो में और 3 ट्रेनों को शास्त्री पार्क डिपो में तैयार किया जा रहा है।

दिल्ली मेट्रो 2002 में शुरू हुई थी और उस दौरान पहली ट्रेनों की खेप को चलते हुए अब लगभग दो दशक पूरे हो रहे हैं। डीएमआरसी ने अब इन पुरानी ट्रेनों को नया रंग-रूप देने की तैयारी की है। ऐसी ही एक पुरानी ट्रेन को नए अंदाज में पेश किया गया। डीएमआरसी के डायरेक्टर मंगू सिंह ने सोमवार को यमुना बैंक डिपो पर इसका अनावरण किया।


मेट्रो पुरानी, अंदाज नयाः देखिए एकदम नए लुक में नजर आएंगी पुरानी मेट्रो ट्रेनें

दिल्ली मेट्रो के पहले फेज में 2002 से 2007 के बीच खरीदी गई पुरानी ट्रेनें जल्द ही बिल्कुल नए रूप में नजर आएंगी। नवीनीकरण की एक विशेष प्रक्रिया के तहत डीएमआरसी ऐसी 70 ट्रेनों को नया रूप दे रही है। यह काम चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा। पहले चरण में 10 ट्रेनों का नवीनीकरण किया जा रहा है। इनमें से 7 ट्रेनों को यमुना बैंक डिपो में और 3 ट्रेनों को शास्त्री पार्क डिपो में तैयार किया जा रहा है।



खर्च होंगे करीब 40-45 करोड़ रुपए
खर्च होंगे करीब 40-45 करोड़ रुपए

इस काम में करीब 40 से 45 करोड़ रुपए खर्च होंगे और अगले साल सितंबर तक यह काम पूरा होगा। उसके बाद बाकी की 60 ट्रेनों का नवीनीकरण किया जाएगा। इस प्रक्रिया को मिडलाइप रिफर्बिशमेंट कहा जाता है और इसे तब किया जाता है, जब कोई मेट्रो ट्रेन अपने उपयोग की अधिकतम समय सीमा, जो कि 30 साल है, उसमें आधा या उससे अधिक कार्यकाल पूरा कर चुकी होती है। जिन 70 ट्रेनों का नवीनीकरण किया जाएगा, वे 14 से 19 साल पुरानी है और इसलिए उन्हें अब नया रूप दिया जा रहा है।



पहली रीफर्बिश्ड ट्रेन चलने के लिए तैयार
पहली रीफर्बिश्ड ट्रेन चलने के लिए तैयार

हाल ही में डीएमआरसी ने 8 कोच वाली ऐसी ही एक पुरानी ट्रेन के मिडलाइफ रीफर्बिशमेंट का काम पूरा किया है। यह काम पूरा करने में करीब दो ढाई महीने का वक्त लगा। सोमवार को डीएमआरसी के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ मंगू सिंह ने इस ट्रेन का अनावरण किया। जल्द ही इस ट्रेन का इस्तेमाल यात्री सेवा में भी किया जाएगा। नवीनीकरण की प्रक्रिया के बाद ये ट्रेनें न केवल अंदर-बाहर से नई दिखने लगेंगी, बल्कि इनमें यात्री सुविधाओं और यात्रियों की सुरक्षा में भी इजाफा होगा। डेढ़ दशक पहले जब ये ट्रेनें दिल्ली मेट्रो के बेड़े में शामिल हुई थीं, तब से लेकर अब तक तकनीकी स्तर पर ट्रेनों के कोच और उनमें मौजूद यात्री सुविधाओं में काफी बदलाव आ चुके हैं और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल बढ़ गया है। उसी को ध्यान में रखते हुए इन ट्रेनों में कुछ ऐसे बदलाव किए गए हैं, जो अब नई ट्रेनों में नजर आते हैं।



पुरानी ट्रेनों में होंगे ये होंगे बदलाव
पुरानी ट्रेनों में होंगे ये होंगे बदलाव

डीएमआरसी के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर अनुज दयाल के मुताबिक, मुख्य रूप से इन ट्रेनों में जो बदलाव किए गए हैं, उसके तहत अब इनमें नई एलईडी लाइट्स और एलसीडी आधारित नए डायनैमिक रूट मैप लगा दिए गए हैं। ट्रेन के प्रत्येक कोच में अंदर और बाहर की तरफ सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं, जिनकी कुल संख्या ट्रेनों के कोच की संख्या पर निर्भर करेगी। मसलन, 8 कोच वाली ट्रेनों में कुल 44 सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे, जबकि पहले इन ट्रेनों में एक भी कैमरा नहीं था। इन कैमरों के जरिए निगरानी रखने के लिए ट्रेन के ड्राइविंग कार में डिस्प्ले पैनल भी लगाया है। इसके अलावा स्मोक डिटेक्टर्स, फायर एक्सटिंग्विशर्स, चार्जिंग पॉइंट्स, नई फ्लोरिंग, कोच के अंदर और बाहर की डेंटिंग पेंटिंग और इलेक्ट्रिकल पैनल्स की पूरी सर्किट्री को बदला गया है, इससे ट्रेन के अंदर तारों में फाल्ट होने की समस्या भी नहीं आएगी।



​क्या खास है इस ट्रांसफॉर्मेशन में
​क्या खास है इस ट्रांसफॉर्मेशन में

LCD-बेस्ड डायनैमिक रूट मैप

CCTV सर्विलांस सिस्टम

फायर डिटेक्शन सिस्टम

मोबाइल और लेपटॉप के लिए चार्जिंग सॉकेट

पुराने फ्लोर के बदले नए फाइबर-कंपोजिट बोर्ड

इंटीरियर को फिर से पेंट किया जा रहा है

इलेक्टिकल पैनल को अपग्रेड किया जा रहा है



​कितनी पुरानी है ये ट्रेनें
​कितनी पुरानी है ये ट्रेनें

मेट्रो ट्रेन का औसत कार्यकाल समय 30 साल है

दिल्ली मेट्रो की पहली खेप की ट्रेनों को 19 साल हो गए हैं

2002-2007 के दौरान 70 ट्रेनें लाई गई थीं

अब इन ट्रेनों को रीफर्बिश्ड करके अपेडट किया जा रहा है

एक ट्रेन को रीफर्बिश्ड करने पर लगभग 4 करोड़ का खर्च

एक ट्रेन को रीफर्बिश्ड करने में 1 महीने का समय लगेगा

DMRC के पास इस समय 350 ट्रेनें हैं





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पंचायत चुनाव में दिया वोट और हो गया बैंक अकाउंट खाली, वजह जान हिल जाएंगे https://ift.tt/3lgFFHa

November 30, 2021
मुंगेरमुंगेर के वरिष्ठ अधिकारी उस समय हैरान रह गए, जब सोमवार को पंचायत चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले कुछ मतदाताओं ने अपने बैंक खाते को लेकर हंगामा शुरू कर दिया। शिकायत थी कि चड़ौन गांव में वोटिंग के समय बायोमेट्रिक के लिए अंगूठे का निशान देने और आधार नंबर जमा करने के बाद उनके बैंक खातों से पैसे निकाले गए। मतदान कर्मचारी ने किया फर्जीवाड़ा इस शिकायत के मिलने के बाद जिले की सदर एसडीओ खुशबु गुप्ता पुलिस बल के साथ मतदान केंद्र पर पहुंची और बायोमेट्रिक सिस्टम संचालक को हिरातस में ले लिया। पता चला कि ये सारा कांड उसी का किया-धरा था। एसडीओ के मुताबिक उन्हें कम से कम सात वोटरों से ये शिकायत मिली कि उनके बैंक खातों से वोटिंग के बाद पैसे निकाले जाने के मैसेज आए। इसके बाद ये सभी वोटर सन्न रह गए। आरोपी मतदान कर्मी ने कबूल किया जुर्म आरोपी मतदान कर्मचारी रवि कुमार सिंह ने पुलिस की पूछचाछ में अपना जुर्म कबूल कर लिया। रवि ने बताया कि उसने मोबाइल एप्लिकेशन की मदद से मतदाताओं के बैंक खातों से पैसे निकाले हैं। रवि जिले में एक बैंक की सीएसपी का भी संचालक है। ऐसे कर रहा था वोटरों के बैंक खातों में खेल उसने खुलासा किया कि वो अपने साथ निर्वाचन विभाग की टैब और अंगूठे का निशान वाली बायोमेट्रिक के साथ अपनी मशीन भी ले गया था। वो वोटरों से पहले आयोग वाली मशीन पर अंगूठे का निशान ले रहा था और फिर बाद में बहाने से अपनी मशीन पर भी। इसके बाद वो मोबाइल एप के सहारे इन वोटरों का अकाउंट खाली कर रहा था। कई वोटरों के खातों से निकाले हजारों रुपये धांधली से बचने के लिए मतदान केंद्रों पर इस्तेमाल किए जा रहे बायोमेट्रिक सिस्टम को संभालने के लिए रवि को मतदान केंद्र पर तैनात किया गया था। शुरुआती जांच में पता चला है कि अलग-अलग मतदाताओं के बैंक खातों से 36 हजार रुपये निकाले गए।


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पंचायत चुनाव में दिया वोट और हो गया बैंक अकाउंट खाली, वजह जान हिल जाएंगे https://ift.tt/3lgFFHa पंचायत चुनाव में दिया वोट और हो गया बैंक अकाउंट खाली, वजह जान हिल जाएंगे
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IIT की फीस नहीं जमा कर पा रही थी गरीब छात्रा, जज ने पेश कर दी मिसाल https://ift.tt/3D7yPKn

November 30, 2021
प्रयागराज इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस दिनेश कुमार सिंह एक दलित छात्रा की योग्यता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने खुद उसकी फीस भर दी। उन्होंने जॉइंट सीट एलोकेशन अथॉरिटी और आईआईटी बीएचयू को भी निर्देश दिए कि छात्रा को तीन दिन में दाखिला दिया जाए। अगर सीट न खाली हो तो अतिरिक्त सीट की व्यवस्था की जाए। हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में छात्रा बताया कि उसके पिता की किडनी खराब हैं। उनकी बीमारी व कोविड की मार के कारण परिवार की आर्थिक हालत बुरी होने से वह फीस नहीं जमा कर पाई। उसने जॉइंट सीट एलोकेशन अथॉरिटी को पत्र लिखकर फीस जमा करने के लिए मोहलत मांगी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। मजबूरन उसे कोर्ट आना पड़ा। उसने मांग की थी कि फीस की व्यवस्था करने के लिए कुछ और समय दिया जाए। शुरू से ही रहा अच्छा परफॉर्मेंस दरअसल छात्रा दलित है। उसने दसवीं की परीक्षा में 95 प्रतिशत तथा बारहवीं कक्षा में 94 प्रतिशत अंक हासिल किये थे। वह जेईई की परीक्षा में बैठी और उसने मेन्स में 92 प्रतिशत अंक प्राप्त किये तथा उसे बतौर अनुसूचित जाति श्रेणी में 2062 वां रैंक हासिल हुआ। उसके बाद वह जेईई एडवांस की परीक्षा में शामिल हुई जिसमें वह 15 अक्टूबर 2021 को सफल घोषित की गई और उसकी रैंक 1469 आयी। आईआीटी बीएचयू में मिली सीट इसके पश्चात आईआईटी बीएचयू में उसे गणित एवं कम्पयूटर से जुड़े पंच वर्षीय कोर्स में सीट आवंटित की गई। किन्तु वह दाखिले की लिए जरूरी 15 हजार की व्यवस्था नहीं कर सकी और समय निकल गया। वह दाखिला नहीं ले पाई। उसने याचिका दाखिल कर मांग की थी कि उसे फीस की व्यवस्था करने के लिए कुछ और समय दे दिया जाए। वकील तक का नहीं कर सकी इंतजाम छात्रा इतनी गरीब है कि वह अपने लिए एक वकील का भी इंतजाम भी नहीं कर सकी थी। इस पर अदालत के कहने पर अधिवक्तागण सर्वेश दुबे एवं समता राव ने आगे आकर छात्रा का पक्ष रखने में अदालत का सहयेाग किया। हफ्ते में दो बार होती है पिता का डायलसिस छात्रा ने याचिका में कहा कि उसके पिता के गुर्दे खराब हैं और उसका प्रत्यारोपण होना है। अभी उनका सप्ताह में दो बार डायलसिस होता है। ऐसे में पिता की बीमारी एवं कोविड की मार के कारण उसके परिवार की आर्थिक हालत बुरी होने के कारण वह समय पर फीस नहीं जमा कर पाई। जबकि वह प्रारम्भ से ही एक मेधावी छात्रा रही है।


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IIT की फीस नहीं जमा कर पा रही थी गरीब छात्रा, जज ने पेश कर दी मिसाल https://ift.tt/3D7yPKn IIT की फीस नहीं जमा कर पा रही थी गरीब छात्रा, जज ने पेश कर दी मिसाल
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यूपी चुनाव: टिकैत के परिवार पर डोरे डाल रहीं पार्टियां https://ift.tt/3xzZXjZ

November 30, 2021
राकेश टिकैत दो बार चुनाव लड़ चुके हैं। एक बार विधानसभा का और दूसरी बार लोकसभा का। दोनों बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हालांकि उस वक्त तक वह राष्ट्रीय चेहरा नहीं बने थे। किसान आंदोलन ने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दे दी है। अब जबकि उन पर आरोप लग रहा है कि उनका आंदोलन राजनीति प्रेरित है, जिसे विपक्ष की पार्टियों का समर्थन हासिल है तो इस आरोप को खारिज करने की जरूरत के मद्देनजर उनके यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना नहीं है। उनके नजदीकी लोग भी बता रहे हैं कि राकेश टिकैत विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। लेकिन वेस्ट यूपी से इस तरह की खबरें सुनने को मिल रही हैं कि उनके भाई चुनाव के मैदान में आ सकते हैं।

क्‍या राकेश टिकैत किसान आंदोलन के जरिए अगले साल होने वाले उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपनी जमीन तैयार कर रहे हैं? करीबियों की मानें तो वे चुनाव नहीं लड़ेंगे।


खुद राकेश टिकैत नहीं लडेंगे यूपी विधानसभा का चुनाव! परिवार पर डोरे डाल रहीं पार्टियां

राकेश टिकैत दो बार चुनाव लड़ चुके हैं। एक बार विधानसभा का और दूसरी बार लोकसभा का। दोनों बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हालांकि उस वक्त तक वह राष्ट्रीय चेहरा नहीं बने थे। किसान आंदोलन ने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दे दी है। अब जबकि उन पर आरोप लग रहा है कि उनका आंदोलन राजनीति प्रेरित है, जिसे विपक्ष की पार्टियों का समर्थन हासिल है तो इस आरोप को खारिज करने की जरूरत के मद्देनजर उनके यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना नहीं है। उनके नजदीकी लोग भी बता रहे हैं कि राकेश टिकैत विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। लेकिन वेस्ट यूपी से इस तरह की खबरें सुनने को मिल रही हैं कि उनके भाई चुनाव के मैदान में आ सकते हैं।



परिवार से कोई लड़ा तो टिकैत का होगा समर्थन!
परिवार से कोई लड़ा तो टिकैत का होगा समर्थन!

कई राजनीतिक दल टिकैत के परिजनों के संपर्क में हैं ताकि उन्हें टिकट के लिए राजी किया जा सके। राजनीतिक दल ऐसा करने में अपना फायदा देख रहे हैं। राकेश टिकैत ऐसे तो किसी खास पार्टी को जिताने की अपील नहीं करेंगे, लेकिन अगर उनके परिवार का कोई शख्स किसी पार्टी से चुनाव लड़ रहा होगा तो स्वाभाविक रूप से उस पार्टी को राकेश टिकैत का समर्थन माना जाएगा।

2007 का विधानसभा चुनाव टिकैत ने निर्दलीय लड़ा था, लेकिन 2014 में उन्हें राष्ट्रीय लोकदल ने टिकट दिया था। 2014 में मोदी लहर के आगे राकेश टिकैत को टिकट देना भी राष्ट्रीय लोकदल को फायदा नहीं पहुंचा पाया था। चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी, दोनों ही उस वक्त चुनाव हार गए थे। नए परिदृश्य में राकेश टिकैत राजनीतिक दलों के लिए कितने नफा-नुकसान का सबब बन सकते हैं, यह देखने वाली बात होगी।



सियासत जो न कराए
सियासत जो न कराए

पिछले दिनों लखनऊ में एक राजनीतिक समारोह का आयोजन हुआ। मौका था समाजवादी पार्टी के सीनियर लीडर रामगोपाल यादव के 75 साल पूरे होने के मौके पर उन पर केंद्रित एक पुस्तक के विमोचन का। यह ऐसी पुस्तक है, जिसमें रामगोपाल यादव पर प्रधानमंत्री से लेकर विपक्ष के तमाम बड़े नेताओं ने लेख लिखे। समारोह में भी विपक्ष के तमाम सीनियर नेताओं की जुटान हुई। मंच पर कांग्रेस के प्रमोद तिवारी से लेकर आरजेडी के मनोज झा तक को जगह मिली। हालांकि, इन दिनों जो दल समाजवादी पार्टी से सबसे ज्यादा गलबहियां करता दिख रहा है, उसके एक सीनियर लीडर को सभागार में मौजूद होने के बावजूद मंच पर जगह नहीं दी गई।

ऐसा क्यों हुआ? क्या यह समारोह का संचालन करने वालों की चूक थी? नहीं। हुआ यह कि इस समारोह में एक ऐसे मेहमान को बुलाया गया था जिन्होंने इस शर्त पर आने की रजामंदी दी थी कि मंच पर उनके साथ चाहे जिन नेताओं को बिठा लिया जाए, लेकिन अमुक नेता को वह स्वीकार नहीं करेंगे। उस मेहमान ने आयोजकों को बताया था कि अगर उस नेता को मंच पर उनके साथ बिठाया गया तो वह समारोह में शामिल नहीं होंगे। पता नहीं उस मेहमान को बुलाने की ऐसी क्या मजबूरी थी कि समाजवादी पार्टी के नेताओं ने उनकी वह शर्त मान ली।

‘अमुक’ नेता सभागार में अपने समकक्ष दूसरे नेताओं को मंच पर बैठे देखते रहे, लेकिन राजनीति में कई बार ऐसे कड़वे घूंट पीने पड़ते हैं। जल्द ही उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। मंच पर बैठने के लिए उन्होंने समाजवादी पार्टी के साथ अपने रिश्तों को बिगाड़ना गैर-जरूरी समझा। शायद समय की यह मांग भी थी।



सिद्धू की नई चाल
सिद्धू की नई चाल

पंजाब में कांग्रेस को वाया नवजोत सिंह सिद्धू एक नया संकट खड़ा होता दिखने लगा है। मुख्यमंत्री पद हाथ से निकल जाने के बाद सिद्धू के पास इस पद के नजदीक पहुंचने का एकमात्र जो रास्ता बचा दिख रहा है, वह यह कि आगामी चुनाव में वह अपने ज्यादा से ज्यादा लोगों को टिकट दिलवाएं। साथ ही उनके लोग ज्यादा से ज्यादा जीत कर भी आएं ताकि पार्टी को बहुमत मिलने की स्थिति में मुख्यमंत्री पद पर उनका दावा मजबूत रहे। इस रणनीति के तहत उन्होंने अपने समर्थक नेताओं की एक लिस्ट बनाई है, जिन्हें वह विधानसभा का टिकट दिलाना चाहते हैं।

उधर, हाईकमान सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर ही अपनी गलती का अहसास कर रहा है। वह सिद्धू समर्थकों को ज्यादा टिकट देकर उन्हें और ताकतवर नहीं बनाना चाहता। उसे इस बात का अहसास हो चुका है कि सिद्धू भरोसेमंद नहीं हैं, वह कभी भी किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। इस वजह से वह फूंक-फूंक कर कदम उठा रहा है। उधर, सिद्धू भी ठहरे जिद्दी। उनके नजदीकी लोगों के जरिए दिल्ली तक इस तरह की खबरें पहुंचनी शुरू हुई हैं कि सिद्धू अपने लोगों को चुनाव जरूर लड़वाएंगे, भले उन्हें कांग्रेस से टिकट मिले या नहीं।

अगर कांग्रेस से टिकट नहीं मिलता है तो उनके लोग पंजाब की ‘भलाई’ के लिए निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं। जबसे यह खबर कांग्रेस आलाकमान तक पहुंची है, उसका बेचैन होना स्वाभाविक है क्योंकि अगर ऐसी स्थिति बनती है तो कांग्रेस का नुकसान होना तय है। पार्टी के गलियारों में पहले से ही यह बात कही जा रही है कि पंजाब में कांग्रेस की वापसी जितनी आसान देखी जा रही थी, मुख्यमंत्री बदले जाने के बाद पैदा हुई स्थितियों में मुश्किल दिखने लगी है। अगर सिद्धू ने जहां-तहां अपने उम्मीदवार उतार दिए, तब तो और ज्यादा मुश्किल खड़ी हो जाएगी।



सबको बनना है मंत्री
सबको बनना है मंत्री

मजबूरी का फायदा सभी उठाना चाहते हैं। राजनीति में तो यह कुछ ज्यादा ही होता है। इन दिनों ऐसा ही राजस्थान में देखने को मिल रहा है। पहले से चल रहे असंतोष को खत्म करने के लिए सीएम अशोक गहलोत ने मंत्रिपरिषद का विस्तार किया। राजस्थान में दो सौ सदस्यों की विधानसभा है। इस लिहाज से वहां मुख्यमंत्री सहित अधिकतम 30 लोग ही मंत्रिपरिषद में हो सकते हैं। यह कोटा फुल हो गया है, लेकिन मंत्री बनने वालों की चाह खत्म नहीं हो रही है।

कांग्रेस के अपने ही 108 विधायक हैं। कोई दर्जन भर निर्दलीय भी सरकार का समर्थन कर रहे हैं। ये सभी मंत्री बनना चाहते हैं। इनको मंत्री बनाने की ख्वाहिश पूरी करने को नया रास्ता निकालने की कोशिश हो रही है। हर मंत्री के साथ उस मंत्रालय का एक सलाहकार नियुक्त किया जा सकता है, जिसे मंत्री पद का दर्जा दिया जाएगा। इसके अलावा सभी निगमों और आयोगों की लिस्ट बनाई जा रही है, जिसमें मनोनयन किया जा सके। कुल मिलाकर सीएम ऐसा बंदोबस्त करने में जुटे हैं कि लगभग सभी सवा सौ विधायक किसी न किसी रूप में मंत्री पद का मजा ले सकें।

राजस्थान में मुख्य विपक्षी दल के रूप में बीजेपी इसे एक बड़ा मुद्दा बना सकती थी, लेकिन पार्टी फिलहाल अपनी अंदरूनी लड़ाई से ही नहीं उबर पा रही है। बीजेपी के ज्यादातर नेता राज्य में कांग्रेस सरकार पर हमलावर होने के पहले अपना ही हिसाब चुकता कर लेना चाहते हैं। मसला मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी का जो ठहरा। राज्य विधानसभा के चुनाव में भले ही अभी दो साल का वक्त बाकी हो, लेकिन पार्टी के नेता अभी से यह साफ कर लेना चाहते हैं कि अगला चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाएगा।





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कहीं खत्‍म न हो जाए गरीबों का रिजर्वेशन https://ift.tt/eA8V8J

November 30, 2021


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प्रदूषण पर जारी निर्देशों पर क्या अमल किया राज्य हलफनामा पेश करे: सुप्रीम कोर्ट https://ift.tt/3xzfFf7

November 30, 2021
नई दिल्ली दिल्ली व एनसीआर प्रदूषण मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के साथ-साथ एनसीआर राज्यों यूपी, हरियाणा और पंजाब सरकार से कहा है कि वह एयर क्वालिटी मैनेजमेंट कमिशन के निर्देशों के अमल के बारे में हलफनामा पेश करें। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा कि निर्देशों का पालन जरूरी है अन्यथा हमें उसे पालन कराने के लिए स्वतंत्र टास्क फोर्स का गठन करना पड़ेगा। केंद्र सरकार से कहा है कि वह सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में कंस्ट्रक्शन गतिविधि होने के आरोपों के मामले में जवाब दाखिल करे। कमीशन के निर्देश पर अमल संबंधित रिपोर्ट पेश करें राज्यसुप्रीम कोर्ट में सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए और बताया कि दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए एयर क्वालिटी मैनेजमेंट कमीशन ने कई निर्दश जारी किए हैं इनमें शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म उपाय हैं। जिन पर राज्यों ने अमल किया है। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कार्यालय में कर्मियों की 50 फीसदी उपस्थिति, दिल्ली में ट्रकों पर बैन करने और स्कूलों को बंद करने का सुझाव दिया था। साथ ही कंट्रक्शन एक्टिविटी पर बैन का भी आदेश दिया गया था। इस दौरान चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि दिल्ली और एनसीआर राज्य कमीशन के अनुपालन को लेकर हलफनामा दायर करें। राज्यों से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कमीशन के निर्देशों के अनुपालन के बारे में हलफनामा दायर करें और सुनवाई के लिए दो दिसंबर की तारीख तय कर दी है। लेबर सेस से वर्करों को रिलीफ देने के आदेश पर क्या हुआचीफ जस्टिस ने कहा कि हमने 24 नवंबर को जो निर्देश जारी किए थे उसके अमल के बारे में भी राज्य रिपोर्ट पेश करें। 24 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण के मद्देजनर अगले आदेश तक कंस्ट्रक्शन गतिविधियों पर फिर से रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर राज्यों को निर्देश दिया था कि जब तक कंस्ट्रक्शन गतिविधियां बंद है तब तक रोक के दौरान लेबर सेस से वर्करों को न्यूनतम भत्ता दिया जाए। इस आदेश के अमल संबंधित रिपोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर राज्यों को पेश करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य बताएं कि कंस्ट्रक्शन वर्करों को वेलफेयर फंड से फंड रिलीज करने के बारे में क्या अनुपालन हुआ है। कंस्ट्रक्शन बैन होने की स्थिति में वर्करों को वेलफेयर फंड से से रिलीफ देने को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था। सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार की ओर से कहा गया कि कंस्ट्रक्शन पर बैन के कारण प्रभावित 2.9 लाख मजदूरों को वेलफेयर फंड से पांच-पांच हजार रुपये दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे राज्यों से इस बाबत जानकारी मांगी है। आदेश पर अमल नहीं हुआ तो टास्क फोर्स बनाना पड़ेगासुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कमीशन के तमाम निर्देश हैं और उन निर्देशों का राज्यों ने पालन किया है। इसके बाद चीफ जस्टिस ने कहा कि राज्यों ने जो आदेश पर अमल किए हैं उस बारे में बताएं और अगर कोई आदेश पालन नहीं हुआ है तो उस पर तुरंत अमल करें। कमीशन के निर्देशों पर अमल जरूरी है अन्यथा हम स्वतंत्र टास्क फोर्स बनाने को बाध्य हो जाएंगे। आदेश पर अमल नहीं होने हमारे पास टास्क फोर्स के गठन का ही रास्ता बचेगा। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के कंस्ट्रक्शन एक्टिविटी पर केंद्र से मांगा जवाबमामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कंस्ट्रक्शन पर रोक का आदेश दिया था फिर भी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में काम चलता रहा। इस पर सॉलिसटिर जनरल से सुप्रीम कोर्ट ने जवाब देने को कहा है। विकास सिंह ने कहा कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में पूरे जोर शोर से काम हो रहा था जबकि कंस्ट्रक्शन एक्टिविटी बंद करने का आदेश था। प्रोजेक्ट आम लोगों के जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा कि विकास सिंह ने जो सवाल उठाए हैं कि दिल्ली में विस्टा प्रोजेक्ट में कंस्ट्रक्शन एक्टिविटी चल रही थी उस पर हम सॉलिसिटर जनरल तो निर्देश देते हैं कि वह हलफनामा दायर करे। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि अगर एयर क्वलिटी मैनेजमेंट कमीशन ने जो निर्देश दिए हैं उन पर राज्यों ने अमल नहीं किया तो सुप्रीम कोर्ट इसके लिए टास्क फोर्स का गठन कर सकता है। निर्देश जारी हुए हैं लेकिन नतीजा शून्य है। केंद्र कह रही है कि कदम उठाए जा रहे हैं लेकिन स्थिति दिनोदिन खराब होती जा रही है। वहीं कोरोना का खतरा भी बरकरार है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि वह सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के कंस्ट्रक्शन के मामले में जवाब दाखिल करे और साथ ही दिल्ली में केंद्र सरकार के कंट्रोल वाले इलाके में प्रदूषण रोकने के लिए क्या प्रयास किए गए हं। केंद्र सरकार ने दाखिल किया है हलफनामा.............केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के ज़ॉइंट सेक्रेटरी की ओर से हलफनामा दायर कर कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 24 नवंबर के आदेश में कहा था कि दिल्ली की एयर क्वालिटी को ठीक रखने के लिए पहले से ऐहतियाती कदम उठाने की जरूरत है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि साइंटिफिक मॉडल और हवा के पैटर्न का आंकलन किया जाए और फिर पूर्वानुमान के आधार पर पहले से सरकार कदम उठाए। वह इस बात का अध्ययन करे कि अलग-अलग सीजन में हवा की क्वालिटी अलग रहती है और फिर हवा के पैटर्न और साइंटिफिक मॉडल के आधार पर कदम उठाए जाएं ताकि प्रदूषण को कंट्रोल किया जा सके। केंद्र सरकार की ओर से बताया गया कि उक्त आदेश के तहत कमीशन ने एक एक्सपर्ट ग्रुप का गठन किया है जो एयर क्वलिटी का आंकलन करेगा। सालों पर अलग-अलग मौसम में एयर क्वालिटी का स्थिति क्या रहती है इसका अध्यययन किया जाएगा। साथ ही हवा के पैटर्न और साइंटिफिक डाटा के आधार पर पूर्वानुमान के तहत ईमरजेंसी स्टेप लिए जाएंगे। इसके लिए एक्सपर्ट ग्रुप सात दिन पहले बताएगा और साथ ही वह राजधानी के हॉट स्पॉट को भी चिन्हित करेगा। साथ ही राज्यों को अनुपालन रिपोर्ट भी पेश करने को कहा गया है। केंद्र सरकार ने कहा कि कमीशन ने दिल्ली और एनसीआर राज्यों के प्रतिनिधियों और तमाम हित धारकों के साथ कई मीटिंग की है। साथ ही इसबात की पहचान की गई कि इलाके में प्रदूषण के कारण क्या हैं। प्रदूषण का मुख्य कारण इंडस्ट्रीज, वाहन का परिचालन, पराली जलाने, कंस्ट्रक्शन और डोमेलेशन साइट पर उड़ने वाले डस्ट, सड़क और ओपन इलाके के डस्ट और बायोमास जलाने, म्युनिसिपल ठोस वेस्ट जलो और लैंडफिल साइट पर फायर मुख्य कारण हैं। दिल्ली और एनसीआर राज्यों को तमाम निर्दश जारी किए गए जिसके तहत स्कूल और एजुकेशनल संस्थान बंद करने, कंस्ट्रक्शन साइट पर कंस्ट्रक्शन पर रोक से लेकर अन्य तमाम कदम उठाने को कहा गया। दिल्ली को कहा गया कि वह डस्क कंट्रोल मॉनिटिरंग के लिए वेब पोर्टल बनाए साथ ही प्लांटेशन और हरित क्षेत्र बढञ़ाने को कहा गया। ई रिक्शा के रजिस्ट्रेशन पर लगाए गए कैप को हटाने के लिए भी कहा गया है। साथ ही कहा गया कि 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल गाड़ी से पुराने वाहन पर एक्शन लिए जाएं।


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प्रदूषण पर जारी निर्देशों पर क्या अमल किया राज्य हलफनामा पेश करे: सुप्रीम कोर्ट https://ift.tt/3xzfFf7 प्रदूषण पर जारी निर्देशों पर क्या अमल किया राज्य हलफनामा पेश करे: सुप्रीम कोर्ट
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एक दिसंबर को SKM ने बुलाई इमरजेंसी मीटिंग, किसानों ने एमएसपी पर मंगलवार तक जवाब मांगा https://ift.tt/3p9wbyA

November 30, 2021
नई दिल्ली पंजाब के किसान नेताओं ने फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए कानूनी गारंटी सहित अपनी अन्य मांगों पर शीतकालीन सत्र में मंगलवार को फैसला करने का केंद्र से अनुरोध किया। उन्‍होंने संसद में तीन कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने को प्रदर्शनकारियों की जीत करार दिया। यह भी कहा कि भविष्य की रणनीति पर चर्चा करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने एक दिसंबर को इमरजेंसी मीटिंग बुलाई है। एसकेएम 40 किसान यूनियन का नेतृत्व कर रहा है। इसने अफसोस जताया कि , 2021 को जब सोमवार को संसद के दोनों सदनों में पारित किया गया, तब उस पर चर्चा करने की अनुमति नहीं दी गई। किसान नेताओं ने सोमवार को कहा, ‘‘यह हमारी जीत है और एक ऐतिहासिक दिन है। हम चाहते हैं कि किसानों के खिलाफ मामले वापस लिए जाएं। हम चाहते हैं कि फसलों के लिए एमएसपी पर एक समिति गठित की जाए। केंद्र के पास हमारी मांगों का जवाब देने के लिए कल (मंगलवार) तक का समय है। हमने भविष्य की रणनीति पर चर्चा करने के लिए बुधवार को एसकेएम की एक आपात बैठक बुलाई है। ’’ दिल्‍ली की सीमाओं पर जश्‍नइस बीच दिल्ली की सीमाओं पर तीन प्रदर्शन स्थलों-सिंघु, गाजीपुर और टिकरी-पर जश्न मनाया गया। किसानों ने भांगड़ा किया और पंजाबी गीतों की धुन पर नृत्य किया। सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शनकारियों ने जीत का जश्न मनाने के लिए एक दूसरे पर पुष्प बरसाये। एसकेएम ने एक बयान में कहा कि कृषि कानूनों को निरस्त किया जाना किसान आंदोलन की पहली बड़ी जीत है लेकिन अन्य अहम मांगें अब भी लंबित हैं। इसने कहा, ‘‘किसान विरोधी केंद्रीय कृषि कानूनों के निरस्त होने के साथ आज भारत में इतिहास रच गया। लेकिन तीनों कृषि कानून को निरस्त करने के लिए पेश किये जाने पर चर्चा की अनुमति नहीं दी गई।’’ किसान संगठन ने कहा कि ये कानून पहली बार जून 2020 में अध्यादेश के रूप में और बाद में सितंबर 2020 में पूरी तरह से कानून के रूप में लाये गये थे लेकिन ‘‘दुर्भाग्य से बगैर किसी चर्चा के उस वक्त भी इन्हें पारित किया गया था। ’’ संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन सोमवार को दोनों सदनों ने कृषि कानून निरसन विधेयक पारित कर दिया। ने 19 नवंबर को तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले की घोषणा की थी। एसकेएम ने आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिजन को मुआवजा देने की भी मांग की। किसान नेताओं ने कहा, ‘‘केंद्र को संसद में कल तक हमारी मांगों पर जवाब देना चाहिए।’’ सूत्रों ने संकेत दिया कि सरकार ने यदि किसानों की शेष मांगों पर विचार करने का इरादा प्रकट किया या गारंटी दी तो आंदोलन वापस लिया जा सकता है। हालांकि, उन्होंने कहा कि इस सिलसिले में कोई भी अंतिम फैसला एसकेएम की आपात बैठक में लिया जाएगा। एक साल से हो रहा है विरोध इन तीन कृषि कानूनों को निरस्त किया जाना करीब 40 किसान यूनियन की मुख्य मांगों में एक था। वे 26 नवंबर 2020 से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने 21 नवंबर को प्रधानमंत्री को एक पत्र लिख कर एमएसपी की कानूनी गारंटी सहित किसानों की छह मांगों पर फौरन वार्ता बहाल करने का अनुरोध किया था। एसकेएम ने सोमवार को बयान में कहा, ‘‘प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने से जुड़ी अन्य मांग पर, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने संकेत दिया है कि वह केंद्र के निर्देश के मुताबिक कदम उठाएंगे।’’ इसने कहा कि दिल्ली और चंडीगढ़ में दर्ज मामलों से केंद्र का सीधा संबंध है। बयान में कहा गया है, ‘‘जबकि हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में दर्ज मामलों पर केंद्र सरकार के फैसले का इंतजार है। ’’


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एक दिसंबर को SKM ने बुलाई इमरजेंसी मीटिंग, किसानों ने एमएसपी पर मंगलवार तक जवाब मांगा https://ift.tt/3p9wbyA एक दिसंबर को SKM ने बुलाई इमरजेंसी मीटिंग, किसानों ने एमएसपी पर मंगलवार तक जवाब मांगा
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अब श्रम कानूनों की भी वापसी की मांग करने लगे किसान संगठन, आखिर दिल्ली बॉर्डर पर जमे नेता चाहते क्या हैं? https://ift.tt/3o1Tuv1

November 29, 2021
नई दिल्ली का मकसद क्या है? यह सवाल फिर से बहुत महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि इसकी अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने अपनी मांगों की फेहरिस्त फिर से बढ़ा दी है। अब किसान आंदोलन के अगुवा देश में मजदूरों का आंदोलन भी खड़ा करने की जुगत में जुट गए हैं। किसान मोर्चा अब मजदूर मोर्चे के साथ गठबंधन करके एक संयुक्त मंच तैयार करने का ऐलान किया है। उसने पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए नई रणनीति पर कदम बढ़ा दिया है। प्रधानमंत्री के अश्वासन पर भरोसा नहीं! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 नवंबर को 'देश के नाम संबोधन' में तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। तब पूरे देश को उम्मीद थी कि अब किसान अपना आंदोलन वापस ले लेंगे। लेकिन, थोड़ी ही देर में फिर से हताशा छा गई। संयुक्त किसान मोर्चा ने तुरंत बयान जारी कर कह दिया कि किसान दिल्ली की सीमाओं पर तब तक डेरा डाले रहेंगे जब तक कि प्रधानमंत्री की घोषणा के मुताबिक कृषि कानूनों को खत्म करने की संसदीय प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाए। सरकार ने फिर से नरमी दिखाई और आंदोलनरत किसान की इस जिद के आगे झुकी। नतीजतन, संसद सत्र के पहले ही दिन कृषि कानूनों की वापसी का विधेयक संसद में पेश किया जा रहा है। बढ़ती जा रही है मांगों की फेहरिस्त आंदोलनकारी किसान इतने से भी नहीं माने, उन्होंने सरकार को छह सूत्री मांगों की सूची सौंप दी। उनकी मांगों में एमएसपी पर कानूनी गारंटी, बिजली संशोधन विधेयक की वापसी, पराली जलाने पर किसानों पर दर्ज मामलों की समाप्ति, विभिन्न राज्यों में प्रदर्शन के दौरान किसानों पर दर्ज मामलों की वापसी, गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा की गिरफ्तारी एवं मंत्रिमंडल से बाहर की मांग और आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले करीब 700 किसानों के परिजनों को मुआवजा देना शामिल है। सरकार मुआवजे से लेकर मुकदमों की वापसी तक, इनमें ज्यादातर मांगों पर भी विचार करने को तैयार है। उसके बाद अब आंदोलनकारियों ने नया मोर्च खोल दिया। संघर्ष के नए-नए मोर्चे खोल रहे हैं किसान अब किसान चार श्रम संहिताओं (Labour Codes) की वापसी की भी मांग भी करने लगे हैं। केंद्र सरकार ने दर्जनों श्रम कानूनों के मकड़जाल को खत्म करके उन्हें चार श्रम संहिताओं में समाहित किया। इसकी मांग वर्षों से हो रही थी। नई व्यवस्था के तहत न्यूतनतम मजदूरी तय करने के साथ-साथ मजूदरों की सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाने का प्रस्ताव भी किया गया है। दूसरी तरफ, 300 से कम श्रमिकों वाली कंपनियों को काम के अनुसार नौकरी पर रखने या निकालने की छूट देने का प्रस्ताव भी है। क्या सच में आंदोलन खत्म करना चाहते हैं किसान? इस प्रावधान के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) और केंद्रीय व्यापारी संघ (Central Trader Union or CTU) ने एक संयुक्त बयान में कहा कि मौजूदा सरकार किसानों और देश के हितों के खिलाफ विनाशकारी नीतियां ला रही है। इसलिए, हम ऐसी नीतियों को खत्म करने और मौजूदा हालात बदलने के लिए हम एकजुट होकर अपना संघर्ष बढ़ाएंगे और अपनी आवाज मजबूत करेंगे। बयान में कहा गया है, 'भारत के मजदूरों और किसानों का लक्ष्य ही हमारा लक्ष्य है।' किसान अपनी मांगें बढ़ा रहे हैं और सरकार उनकी मांगों पर गौर भी कर रही है। बावजूद किसानों को लगता है कि सरकार एकतरफा और अलोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन खत्म करने पर तुली है। एसकेएम ने रविवार को कहा कि सरकार को किसानों से बातचीत करनी चाहिए। किसान संगठन की विरोधाभासी बातें कितनी हैरत की बात है कि जिन किसान नेताओं को प्रधानमंत्री के वादे पर भरोसा नहीं है, वो बीजेपी शासित राज्यों के लिए केंद्र से भरोसा चाहते हैं! केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आंदोलनरत किसानों की छह नई मांगों पर शनिवार को कहा कि किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमों की वापसी और आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिजनों को मुआवजा देने का फैसला राज्य सरकारें करेंगी। इस पर संयुक्त किसान मोर्चा ने रविवार को कहा, 'पंजाब दोनों मुद्दों पर भरोसा दिला चुका है। चूंकि बाकी सभी बीजेपी शासित राज्य हैं और चूंकि बीजेपी शासित भारत सरकार के उठाए किसान विरोधी कदमों के कारण ही आंदोलन की शुरुआत हुई है, इसलिए जरूरी है कि इस पर केंद्र सरकार भरोसा दिलाए ताकि बीजेपी शासित राज्यों को इन्हें लागू करने को बाध्य होना पड़े।' अब मंशा पर उठेंगे सवाल ऊपर के उदाहरणों से लाजिमी है कि दिल्ली बॉर्डर पर एक साल से डटे किसान संगठनों के प्रतिनिधि मोर्चे के रवैये पर सवाल उठे। आखिर, देश के प्रधानमंत्री के बयान पर भरोसा नहीं करने वाले, किस आधार पर उन मामलों पर केंद्र से आश्वासन चाहते हैं जिन पर राज्यों को फैसला लेना है? सवाल यह भी है कि 'सरकार के एक कदम बढ़ाएगी तो हम चार कदम बढ़ाएंगे' की रट लगाने वाले नेताओं से क्या यह पूछना अप्रासंगिक होगा कि क्या सुलह का रस्ता यही होता है? सरकार जैसे-जैसे नरमी बरत रही है, वैसे-वैसे किसान नेता रौद्र रूप धारण करने लगे हैं। इससे क्या उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं दिखता है? इन सवालों के उचित जवाब दे पाएंगे किसान नेता? आखिर, नई-नई मांगें करना, वो भी दायरा लांघकर दूसरी सीमा में प्रवेश करने के औचित्य पर सवाल तो खड़ा किया ही जाएगा? आखिर, किसानों को क्या पड़ी है कि वो मजदूरों की बात करे? क्या किसान आंदोलन के शुरुआती अजेंडे में भी शामिल थी? जब सरकार किसानों से सुलह करने के मूड में दिख रही है तो नए-नए मोर्चे खोलकर उसे घेरते रहने की रणनीति पर सवालिया निशान नहीं लगने चाहिए? आखिर दिल्ली बॉर्डर पर बैठे लोग किसानों का हित चाहते हैं या फिर बीजेपी का अहित, उन्हें यह स्पष्ट करना होगा क्योंकि धीरे-धीरे यह धारणा मजबूत हो सकती है कि किसान नेताओं को किसानों के हितों से ज्यादा इस बात को लेकर चिंतित हैं कि वो चुनावों में बीजेपी को नुकसान पहुंचा पाएंगे या नहीं?


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अब श्रम कानूनों की भी वापसी की मांग करने लगे किसान संगठन, आखिर दिल्ली बॉर्डर पर जमे नेता चाहते क्या हैं? https://ift.tt/3o1Tuv1 अब श्रम कानूनों की भी वापसी की मांग करने लगे किसान संगठन, आखिर दिल्ली बॉर्डर पर जमे नेता चाहते क्या हैं?
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शाही ईदगाह में कृष्ण प्रतिमा स्थापित करने का ऐलान, मथुरा में धारा 144 लागू https://ift.tt/3rj0CVN

November 29, 2021
मथुरा मथुरा में दक्षिणपंथी संगठनों ने शाही ईदगाह में 6 दिसंबर को भगवान कृष्ण की प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा की है। इस ऐलान के बाद मथुरा में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। बताया जा रहा है कि यह मस्जिद कृष्ण जन्मस्थान मंदिर के नजदीक है। एसएसपी गौरव ग्रोवर ने कहा, 'धारा 144 जिले में लागू कर दी गई है। अफवाह फैलाने वालों और शांतिपूर्ण वातावरण को भंग करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। हमें सूचना मिली थी कि कुछ संगठन 6 दिसंबर को ईदगाह तक फूट मार्च व समारोह का आयोजन करने की कोशिश कर रहे हैं।' बढ़ाई गई सुरक्षा एसएसपी ने कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जनता से पुलिस का सहयोग करने की अपील की। वहीं प्रशासन ने भी स्थिति को संभालने के लिए अल्पसंख्यक समुदाय के साथ बातचीत की। सर्कल ऑफिसर (सिटी) अभिषेक तिवारी ने इस बारे में कहा कि किसी को भी कोई शरारत करने की इजाजत नहीं है। इसके अलावा एसएसपी ने मथुरा में अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं के साथ भी बातचीत की और उन्हें आश्वासन दिया कि उन्होंने जिले की सुरक्षा बढ़ा दी है। कोर्ट में याचिकाएं भी हुई थीं दायर बता दें कि ईदगाह में प्रतिमा की स्थापना की धमकी तब सामने आई थी, जब स्थानीय कोर्ट ने 17वीं शताब्दी की मस्जिद को हटाने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई की थी। पुलिस ने इस बारे में बताया कि किसी भी तरह के कार्यक्रम के लिए कोई इजाजत नहीं दी गई है और न ही दी जाएगी। समझौते के बीते 53 साल मथुरा में कौमी एकता मंच के सदस्यों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से 6 दिसंबर को सुरक्षा प्रदान करने का अनुरोध किया। मंच के संस्थापक मधुवन दत्त चतुर्वेदी ने कहा कि शाही ईदगाह और श्री कृष्ण जन्मस्थान संस्थान के प्रबंधकों के बीच साइन हुए समझौते को करीब 53 साल बीत गए हैं। हमें इसे नहीं तोड़ना चाहिए। अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा ने मामले पर कहा कि इस मुद्दे को बेवजह उठाया जा रहा है और सभी पार्टियों को सचेत रहने की आवश्यकता है, क्योंकि यूपी में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।


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शाही ईदगाह में कृष्ण प्रतिमा स्थापित करने का ऐलान, मथुरा में धारा 144 लागू https://ift.tt/3rj0CVN शाही ईदगाह में कृष्ण प्रतिमा स्थापित करने का ऐलान, मथुरा में धारा 144 लागू
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'कब होगी कार्रवाई?' अब TET पेपर लीक पर वरुण गांधी का अपनी ही सरकार पर निशाना https://ift.tt/3xxXqqq

November 29, 2021
लखनऊ उत्तर प्रदेश टीईटी पेपर लीक मामले में एक बार फिर बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने सरकार को निशाने पर लिया है। ट्विटर के माध्यम से वरुण गांधी ने कहा कि शिक्षा माफियाओं पर सरकार को कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। वरुण गांधी ने ट्विटर पर एक वीडियो भी शेयर किया है जो बीते कई रोज से काफी वायरल है। इसमें टीवी चैनल पर चर्चा के दौरान एक राजमिस्त्री कह रहा है कि उसे सरकार से शिक्षा चाहिए। शिक्षा होगी तो रोटी-कपड़ा वह छीन लेगा। पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने ट्वीट किया, 'UPTET परीक्षा पेपर लीक होना लाखों युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ है। इस दलदल की छोटी मछलियों पर कार्रवाई से काम नहीं चलेगा, उनके राजनैतिक संरक्षक शिक्षा माफियाओं पर कठोर कार्रवाई करे सरकार। क्योंकि अधिकांश शिक्षण संस्थानों के मालिक राजनैतिक रसूखदार हैं, इनपर कार्रवाई कब होगी?' टीईटी पेपर लीक मामले में 23 गिरफ्तार गौरतलब है कि रविवार को यूपी टीईटी परीक्षा के दौरान पेपर लीक होने पर इसे निरस्त कर दिया। इससे 21 लाख युवाओं को परेशानी झेलनी पड़ी है। यूपी सरकार ने मामले की जांच एसटीएफ को सौंपी है और अब तक करीब 23 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने पेपर लीक करने वाले सॉल्वर गैंग पर गैंगस्टर ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया है। बार-बार निशाना साध रहे हैं वरुण गांधीवहीं बात करें वरुण गांधी तो पिछले कई रोज से वह अपने ट्वीट्स को लेकर सुर्खियों में रहते हैं। किसान आंदोलन और कृषि कानूनों को लेकर वह कई बार अपनी ही सरकार को कटघरे में कर चुके हैं। मोदी सरकार के कृषि कानून वापसी के ऐलान का वरुण गांधी ने स्वागत किया था। उन्होंने एमएसपी पर कानून के साथ किसानों के दूसरे मुद्दे सुलझाने की मांग की थी।


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'कब होगी कार्रवाई?' अब TET पेपर लीक पर वरुण गांधी का अपनी ही सरकार पर निशाना https://ift.tt/3xxXqqq 'कब होगी कार्रवाई?' अब TET पेपर लीक पर वरुण गांधी का अपनी ही सरकार पर निशाना
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यहां डॉक्टर नब्ज नहीं बल्कि कुंडली देख कर रहे मरीजों का इलाज, बिहार में देश का इकलौता और अनोखा अस्पताल https://ift.tt/3cZqYDO

November 29, 2021
पटनाबिहार देश का वो इकलौता राज्य बन गया है जहां के एक अस्पताल में डॉक्टर नब्ज और जांच की रिपोर्ट देखकर नहीं बल्कि मरीज की कुंडली देख उसका इलाज कर रहे हैं। इस अस्पताल ने भारत को एक बार फिर से ऋषि-मुनियों और अध्यात्म का देश साबित किया है। हैरत की बात ये है कि अस्पताल सरकारी है। दरभंगा में कुंडली देखकर मरीजों का इलाज देश में पहली बार सरकारी आयुर्वेदिक कॉलेज दरभंगा (GACD) ने रविवार को विभिन्न रोगों से पीड़ित लोगों को उनकी कुंडली के माध्यम से राहत प्रदान करने के लिए चिकित्सा ज्योतिष में अपना बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) शुरू किया। जानिए- कुंडली से कैसे होता है रोग का इलाज जीएसीडी के प्राचार्य डॉ दिनेश्वर प्रसाद ने कहा कि 'चिकित्सा ज्योतिष ज्योतिष की एक प्राचीन अनुप्रयुक्त शाखा है जो शरीर के विभिन्न अंगों, रोगों और औषधियों का सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों और बारह राशियों की प्रकृति के साथ संबंध पर आधारित है। जड़ी-बूटियों और अन्य दवाओं को उनके ज्योतिषीय गुणों को देखते हुए उपचार के लिए चुना जाता है। इस प्रणाली में, बीमार लोगों को उनकी कुंडली या हस्तरेखा की मदद से उपचार के तरीके की सलाह दी जाती है।' गुमनामी के अंधेरे में डूबा था ये प्राचीन तरीका डॉ प्रसाद ने आगे बताया कि प्राचीन काल में यह विज्ञान काफी लोकप्रिय था लेकिन समय के साथ यह गुमनामी में डूब गया। लेकिन, अब यह फिर से उपयोग में आ रहा है और GACD देश का पहला अस्पताल है जिसने आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा के साथ-साथ चिकित्सा ज्योतिष की शुरुआत की है। कुंडली से इलाज का फॉर्म्यूला जान हैरान रह जाएंगे डॉक्टर दिनेश्वर प्रसाद के मुताबिक आयुर्वेद के आवश्यक घटक 'दिनचर्य', 'ऋतुचार्य' और 'पंचकर्म' के सिद्धांत सभी चिकित्सा ज्योतिष पर आधारित हैं। ओपीडी प्रभारी डॉ दिनेश कुमार ने बताया कि आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी को मेडिकल ज्योतिष में पूर्ण पाठ्यक्रम शुरू करने का प्रस्ताव मंजूरी के लिए भेजा जा चुका है। चिकित्सा ज्योतिष ओपीडी का उद्घाटन करते हुए एमएलसी अर्जुन साहनी ने कहा कि इस केंद्र से मिथिला क्षेत्र के लोगों को काफी फायदा होगा। इस अवसर पर राशियों पर आधारित औषधीय पौधों का एक उद्यान भी खोला गया।


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यहां डॉक्टर नब्ज नहीं बल्कि कुंडली देख कर रहे मरीजों का इलाज, बिहार में देश का इकलौता और अनोखा अस्पताल https://ift.tt/3cZqYDO यहां डॉक्टर नब्ज नहीं बल्कि कुंडली देख कर रहे मरीजों का इलाज, बिहार में देश का इकलौता और अनोखा अस्पताल
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'एक बीमारी कटी, दूसरी पर बात करे सरकार', कृषि कानून वापसी बिल पास होने पर बोले राकेश टिकैत https://ift.tt/3xvsRlf

November 29, 2021
नई दिल्ली भारतीय किसान यूनियन (BKU) नेता ने तीन नए कृषि कानूनों की वापसी के लिए लोकसभा में विधेयक पास होने को सामान्य प्रक्रिया बताते हुए कहा कि इसकी खुशी क्या मनाएं जब हमारे 750 किसान आंदोलन के दौरान मर गए। उन्होंने कृषि कानूनों को बीमारी बताते हुए कहा कि अभी आंदोलन खत्म नहीं होगा और किसान अन्य समस्याओं के समाधान तक दिल्ली की सीमाओं पर डटे रहेंगे। 4 दिसंबर को तय होगा आंदोलन का नया अजेंडा: टिकैत लोकसभा से विधेयक के पास होते ही संवाददाताओं ने टिकैत से कई सवाल किए जिनके जवाब में टिकैत ने कहा कि अब किसान संगठन चार दिसंबर को मीटिंग करेंगे और आंदोलन का अजेंडा नए सिरे से तय करेंगे। उन्होंने कहा, '4 दिसंबर के बाद आंदोलन की नई रूपरेखा तय होगी।' टिकैत से जब पूछा गया कि जब केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के मुताबिक विधेयक पास करवा दिया है तो क्या अब किसान सड़क खोलेंगे तो उन्होंने कहा, 'हमने सड़क खोल रखी है। मीडिया वालों को नहीं दिख रही है तो हम क्या करें?' उन्होंने कहा कि सड़क खोलने की जिम्मेदारी प्रशासन की है क्योंकि किसानों ने अपनी तरफ से सड़क घेर नहीं रखी है। टिकैत ने गिना दी मांगों की फेहरिस्त टिकैत ने कहा कि सरकार ने कृषि कानूनों की वापसी सुनिश्चित की है, लेकिन अभी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) समेत कई मुद्दे हैं जिन पर सरकार अब भी चुप है। उन्होंने कहा, '(कृषि कानून) एक बड़ी बीमारी थी, कट गई। दूसरी बीमारी है, उस पर भी बात हो। एमएसपी का एक बड़ा सवाल है, पॉल्युशन वाला है, 10 साल पुराना ट्रैक्टर का मसला है, इन सब पर बात करे। एमएसपी पर भी बात कर ले सरकार।' विपक्ष के शोर-शराबे का समर्थन लोकसभा में चर्चा नहीं हो पाई और कृषि कानूनों की वापसी का विधेयक ध्वनिमत से पास हो गया, इस पर टिकैत ने कहा कि इस पर अब क्या चर्चा होना? यह बीमारी थी जो हट गई, ठीक हुआ। उन्होंने विपक्ष के हंगामे का समर्थन करते हुए कहा, 'विपक्ष कह रहा था कि एमएसपी और किसानों के अन्य मुद्दों पर चर्चा हो। विपक्ष अगर एमएसपी की बात कर रहा है तो ठीक ही कर रहा है।'


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क्या सेंट्रल विस्टा निर्माण कार्य जारी रहने से बढ़ रहा प्रदूषण? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब https://ift.tt/3lerFxO

November 29, 2021
नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर चिंता जाहिर की है। शीर्ष अदालत ने प्रदूषण के बेहद खराब होते स्तर के बीच सेंट्रल विस्टा परियोजना निर्माण कार्य जारी रखने को लेकर भी सवाल उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वह केंद्र से पूछेगा कि क्या सेंट्रल विस्टा परियोजना में निर्माण कार्य जारी रखने से धूल प्रदूषण बढ़ रहा है। पलूशन कंट्रोल करने को लेकर स्ट्रगल सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से यह बताने के लिए कहा कि दिल्ली में परियोजना के कारण वायु प्रदूषण को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए। शीर्ष अदालत ने कहा कि हम दिल्ली में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, चाहे वह सेंट्रल विस्टा हो या कुछ और। अदालत ने कहा कि ऐसा मत सोचें कि हम कुछ नहीं जानते। ध्यान भटकाने के लिए कुछ मुद्दों को फ़्लैग न करें। सॉलिसिटर जनरल को इस पर जवाब देना होगा। प्रदूषण के साथ कोरोना वायरस का खतरा चीफ जस्टिस एनवी रमणा ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि केंद्र का कहना है कि वह कदम उठा रहा है, फिर भी राजधानी में प्रदूषण का स्तर दिन-ब-दिन खराब होता जा रहा है और कोरोनावायरस का भी खतरा मंडरा रहा है। चीफ जस्टिस ने इसपर कहा, ‘क्या करना है?’ याचिकाकर्ता नाबालिग आदित्य दुबे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने दलील दी कि सेंट्रल विस्टा परियोजना के संबंध में चल रही निर्माण गतिविधि भी दिल्ली में वायु प्रदूषण को बढ़ा रही है और अदालत से इसे रोकने के लिए निर्देश जारी करने का आग्रह किया। तो टास्क फोर्स का गठन करना होगा इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि अगर राज्य सरकारें वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए शीर्ष अदालत, केंद्र और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को लागू नहीं करती हैं, तो अदालत इन निर्देशों के कार्यान्वयन के लिए एक टास्क फोर्स का गठन करेगी। सीजेआई एन.वी. रमणा की अध्यक्षता वाली और जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि एक स्वतंत्र टास्क फोर्स बनाने के करीब (वायु प्रदूषण को रोकने के उपाय के रूप में) ... अगर राज्य कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। 'अधिकारियों को उम्मीद है कि सब अच्छा होगा' शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा कि निर्देश जारी किए गए हैं और अधिकारियों को उम्मीद है कि सब अच्छा होगा। पीठ ने कहा कि लेकिन, जमीन पर रिजल्ट जीरो हैं। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों - दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा को दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (AQMC) द्वारा जारी निर्देशों का पालन करने का निर्देश दिया और उनसे अनुपालन रिपोर्ट मांगी।


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क्या सेंट्रल विस्टा निर्माण कार्य जारी रहने से बढ़ रहा प्रदूषण? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब https://ift.tt/3lerFxO क्या सेंट्रल विस्टा निर्माण कार्य जारी रहने से बढ़ रहा प्रदूषण? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
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सियासत में विरासत न मिलने की टीस, झारखंड के सोरेन परिवार से लेकर गोवा के पर्रिकर तक दर्द-ए-कुर्सी https://ift.tt/3libaR3

November 29, 2021
दिल्ली/रांची राजनीति में विरासत की हकतलफी से बगावत जन्म लेती है। इसके तमाम उदाहरण हैं। महाराष्ट्र और झारखंड की सियासत में इतिहास खुद को दोहराता दिख रहा है। गोवा के सीएम रह चुके मनोहर पर्रिकर की मौत के बाद उनके बेटे उत्पल पर्रिकर को यह टीस है कि पिता के बाद पार्टी से उन्हें जो मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। झारखंड में सीएम हेमंत सोरेन की भतीजियों को भी शिकायत है कि पिता के निधन के बाद उन्हें उनका 'हक' नहीं मिला। CM चाचा के लिए चुनौती हैं जयश्री-राजश्री झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन इन दिनों विपक्ष से भी ज्यादा असहज किसी से महसूस कर रहे हैं तो वे हैं उनकी दोनों भतीजियां- जयश्री और राजश्री। इन दोनों भतीजियों की मां यानी हेमंत की भाभी सीता सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा की ही विधायक हैं। लेकिन पति दुर्गा सोरेन के निधन के बाद से घर में पाले इसलिए बंट गए हैं कि सीता और उनकी दोनों बेटियों को लगता है कि उन्हें पार्टी और सरकार में वह सम्मान नहीं मिल रहा है, जिसकी वे हकदार हैं। जयश्री और राजश्री ने बनाया दुर्गा सोरेन सेना दोनों बहनें जयश्री और राजश्री ने दुर्गा सोरेन सेना का गठन किया था। इस सेना के गठन से कुछ समय पहले से ही दोनों बहनें सोशल मीडिया पर हेमंत सोरेन सरकार की नीतियों की आलोचना करती रही हैं। दोनों बहनों ने एमबीए और लॉ की पढ़ाई की हैं। पिछले महीने विजयादशमी के मौके पर इन्होंने दुर्गा सेना का गठन किया था। विधायक मां से मिली थी बेटियों को शुभकामना दुर्गा सोरेन सेना गठन के दौरान सीता सोरेन मौजूद नहीं थीं, लेकिन उन्होंने ट्वीट कर यह जरूर कहा था कि 'विजयादशमी के दिन हमारी बेटियां जयश्री और राजश्री द्वारा पिता स्व. दुर्गा सोरेन जी के सपनों को पूरा करने के लिए दुर्गा सोरेन सेना का गठन किया गया है। आप दोनों को हार्दिक शुभकामनाएं। हमें पूर्ण विश्वास है कि आप दोनों पिता द्वारा मिली समाजसेवा की प्रेरणा के साथ जनता की सेवा करेंगी।' संदेहास्पद हालात में हुई थी दुर्गा सोरेन की मौत जेएमएम के संस्थापक और राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन के तीन बेटे थे। उनमें सबसे बड़े दुर्गा सोरेन थे। शुरुआती सालों में उन्हें ही शिबू सोरेन का उत्तराधिकारी माना जाता था। वह दो बार विधायक भी बने थे। लोकसभा का भी चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए थे। पार्टी महासचिव के रूप में काम कर रहे थे। लेकिन 21 मई 2009 को वह बोकारो सिटी में अपने निवास पर संदेहास्पद हालात में मृत पाए गए थे। उनके निधन के बाद ही हेमंत उभरे। सीता सोरेन से बहुत आगे निकल गए हेमंत दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन चाहती थीं कि उन्हें उनके पति की जगह पार्टी में आगे बढ़ाया जाए, लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ। हेमंत उनको पीछे छोड़ते हुए बहुत आगे बढ़ गए। पार्टी पर भी उनकी मजबूत पकड़ हो गई और यह सब मुमकिन भी इस वजह से हुआ कि शिबू सोरेन हेमंत को ही आगे बढ़ते देखना चाहते हैं।


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सियासत में विरासत न मिलने की टीस, झारखंड के सोरेन परिवार से लेकर गोवा के पर्रिकर तक दर्द-ए-कुर्सी https://ift.tt/3libaR3 सियासत में विरासत न मिलने की टीस, झारखंड के सोरेन परिवार से लेकर गोवा के पर्रिकर तक दर्द-ए-कुर्सी
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डायबिटीज मरीजों को मिल सकती है खुशखबरी, चीफ जस्टिस ने की सब्सिडी की मांग https://ift.tt/3cVEMPJ

November 29, 2021
नई दिल्ली डायबिटीज मरीजों और उनके परिजनों को जल्द ही खुशखबरी मिल सकती है। सरकार डायबिटीज को नियंत्रण में रखने और इसके इलाज में उपयोगी दवाइयों और चिकित्सा उपकरणों पर सब्सिडी दे सकती है। इसकी उम्मीद इसलिए है क्योंकि सरकार को इसकी सलाह किसी और ने नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) एनवी रमण ने दी है। गरीबों का दुश्मन है: सीजेआई प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमण ने रविवार को कहा कि यह आवश्यक है कि सरकार मधुमेह देखभाल (Diabetes Care) के लिए सहायता और सब्सिडी प्रदान करे क्योंकि यह एक 'महंगी बीमारी' है। जस्टिस रमण ने डायबिटीज को एक आजीवन बीमारी और गरीबों का दुश्मन करार दिया। उन्होंने कहा कि स्थानीय आबादी को लक्षित करके भारत विशिष्ट अध्ययन (India Specific Study) करना अनिवार्य है, जिससे उचित उपचार प्रोटोकॉल (Proper Treatment Protocol) विकसित करने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि सरकार को बीमारी से निपटने के लिए और अधिक स्वास्थ्य पेशेवरों (Health Professionals) को प्रशिक्षित करने और सेवा में लाने की जरूरत है। सरकार से सीजेआई की मांग न्यायमूर्ति रमण ने मधुमेह पर आहूजा बजाज संगोष्ठी' में कहा कि कोविड-19 ने पहले ही उजागर कर दिया है कि हमारी स्वास्थ्य प्रणाली (Health System) पर अत्यधिक बोझ है और का इलाज खोजने के लिए आधुनिक दवाएं विकसित करना समय की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मधुमेह के इलाज में काफी अधिक खर्च होता है, इसलिए यह आवश्यक है कि सरकार मधुमेह की देखभाल के लिए सहायता और सब्सिडी प्रदान करे। उन्होंने कहा कि सरकार को इस समस्या से निपटने के लिए अधिक स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित करने और सेवा में लाने की भी जरूरत है। चीफ जस्टिस ने कहा, 'राष्ट्र और उसके नागरिकों का स्वास्थ्य सर्वोपरि है और हमने अपने लिए जो विकासात्मक लक्ष्य निर्धारित किए हैं उसके लिए भी यह जरूरी है।' डायबिटीज का इलाज ढूंढना जरूरी: सीजेआई उन्होंने कहा कि जब भारतीय वैज्ञानिक और शोधकर्ताओं ने महामारी फैलने के कुछ महीनों के भीतर कोविड-19 रोधी टीके के लिए मिलकर काम किया तो वह बहुत उत्साहित थे। हालांकि, हम मधुमेह के लिए एक स्थायी इलाज खोजने के करीब भी नहीं हैं, जो एक पुरानी बीमारी है। उन्होंने कहा, 'मेरी एक ही इच्छा है कि इसका इलाज मिल जाए। इसके लिए वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को पूरा ध्यान देना होगा। इस बीमारी और इसके नियंत्रण के बारे में जागरूकता फैलाने में डॉक्टरों की अहम भूमिका प्रशंसनीय है।' उन्होंने कहा, 'यह बीमारी गरीब आदमी की दुश्मन है। यह एक महंगी बीमारी है।'


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डायबिटीज मरीजों को मिल सकती है खुशखबरी, चीफ जस्टिस ने की सब्सिडी की मांग https://ift.tt/3cVEMPJ डायबिटीज मरीजों को मिल सकती है खुशखबरी, चीफ जस्टिस ने की सब्सिडी की मांग
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क्या छिनने वाला है ‘यंग नेशन’ का तगमा? जानें क्या-क्या कहते हैं NFHS-5 के आंकड़े https://ift.tt/eA8V8J

November 29, 2021
अगर देश में काम करने वालों की संख्या कम होगी और उस पर निर्भर आबादी ज्यादा होगी, तो सबकी जरूरतें पूरी करने, उनके लिए पेंशन आदि का इंतजाम करने जैसी चुनौतियां आएंगी

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क्या छिनने वाला है ‘यंग नेशन’ का तगमा? जानें क्या-क्या कहते हैं NFHS-5 के आंकड़े https://ift.tt/eA8V8J क्या छिनने वाला है ‘यंग नेशन’ का तगमा? जानें क्या-क्या कहते हैं NFHS-5 के आंकड़े
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कब खत्म होगी बिहार, झारखंड, यूपी की गरीबी? नीति आयोग की गरीबी इंडेक्स के संकेत समझिए https://ift.tt/3177VFe

November 29, 2021
नीति आयोग की ओर से जारी की गई पहली मल्टी डाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स (एमपीआई) रिपोर्ट जहां अलग-अलग राज्यों के हालात का ब्योरा देती है, वहीं नीति निर्धारकों के लिए एक नई और बेहतर कसौटी भी मुहैया कराती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, अगर 51.9 फीसदी गरीब आबादी के साथ बिहार में सबसे ऊपर है औऱ 0.71 फीसदी गरीब आबादी के साथ केरल सबसे नीचे तो अपने आप में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। ऊपर और नीचे के कुछ और राज्य देखें तो अपेक्षा के अनुरूप ही बिहार के साथ झारखंड, यूपी और मध्य प्रदेश खड़े मिलते हैं, जबकि केरल के साथ गोवा, सिक्किम और तमिलनाडु। साफ है कि आम लोगों तक आवश्यक सुविधाएं पहुंचाने और उनका जीवन स्तर ऊंचा करने के मामले में कुछ राज्यों ने उल्लेखनीय सफलता पाई है, जबकि कुछ अन्य राज्य इस मामले में बहुत पीछे हैं। मगर इसका ठीक-ठीक अंदाजा हमें पूंजी निवेश या प्रति व्यक्ति आय के आंकड़ों से नहीं मिलता। इसीलिए ऐसे खास मानकों की जरूरत होती है, जिससे पता चले कि विभिन्न सरकारों द्वारा शुरू की गई और चलाई जा रही योजनाओं और नीतियों का जमीन पर कैसा और कितना प्रभाव पड़ रहा है, उससे आम नागरिकों के जीवन में किस तरह के और कितने बदलाव आ रहे हैं। इस संदर्भ में नीति आयोग की यह मल्टी डाइमेंशनल इंडेक्स रिपोर्ट अहम हो जाती है। हालांकि इसके लिए जरूरी आंकड़े नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) की 2015-16 की रिपोर्ट से लिए गए हैं और इस लिहाज से ये पांच साल पहले के हालात का ब्योरा पेश करते हैं। लेकिन इसकी असल अहमियत इसकी मेथडॉलजी में निहित है। एमपीआई समान महत्व के तीन कारकों- स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर- के आधार पर स्थिति का आकलन करता है और इसके लिए 12 इंडिकेटर्स का उपयोग हुआ है। यह महज गरीबी रेखा के आधार पर गरीबी नापने के पारंपरिक तरीके से निश्चित रूप से अलग है। यह 2015 में 193 देशों द्वारा अपनाए गए सस्टेनेबल डिवेलपमेंट गोल (एसडीजी) के वैश्विक फ्रेमवर्क के अनुरूप है। जहां तक पिछले पांच साल के दौरान हुई प्रगति का सवाल है तो जैसा कि नीति आयोग का कहना है, एनएफएचएस के ताजा सर्वे के सभी आंकड़े जारी होने के बाद इसके आधार पर बनाई जाने वाली दूसरी एमपीआई रिपोर्ट में वह भी कवर हो जाएगी, लेकिन असली चुनौती केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह है कि वे अपनी नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों को नीति आयोग द्वारा मुहैया करवाई गई इस कसौटी पर कसते हुए आगे बढ़ें। चाहे देश में पूंजी निवेश बढ़ाने की बात हो या जीडीपी की रफ्तार तेज करने की, इन सबका आखिरी हासिल तो यही होता है कि उससे देश के सामान्य लोगों के जीवन तक कितनी सुविधाएं पहुंचीं, उसमें कितनी क्वॉलिटी आ सकी। इसीलिए यह भी जरूरी है कि सरकार की उपलब्धियों को ऐसे मानकों पर कसने का सिलसिला किसी वजह से थमने न दिया जाए।


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कब खत्म होगी बिहार, झारखंड, यूपी की गरीबी? नीति आयोग की गरीबी इंडेक्स के संकेत समझिए https://ift.tt/3177VFe कब खत्म होगी बिहार, झारखंड, यूपी की गरीबी? नीति आयोग की गरीबी इंडेक्स के संकेत समझिए
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इन 12 देशों से भारत आने वाले यात्री होंगे हाई रिस्क कैटेगरी में, इनके लिए ये है नियम https://ift.tt/3D0x69w

November 29, 2021
नई दिल्ली कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमीक्रोन के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने विदेश से आने वाले लोगों के लिए नई गाइडलाइंस जारी की है। केंद्र सरकार ने 12 देशों की एक लिस्ट जारी की है। इस लिस्ट में जिन देशों के नाम है उनको नई गाइडलाइंस फॉलों करनी होगी। सरकार ने चार देश साउथ अफ्रीका, चीन, न्यूजीलैंड और हॉन्गकॉन्ग के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं। चार देशों से आने वाले यात्रियों के लिए गाइडलाइंससरकार की नई गाइडलाइंस के अनुसार साउथ अफ्रीका, चीन, न्यूजीलैंडऔर हॉन्गकॉन्ग से आने वाले यात्रियों को सबसे पहले अपना वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट दिखाना होगा। उसके बाद उन यात्रियों की आरटीपीसीआर जांच भी होगी। जांच का रिजल्ट आने के बाद भी सात दिन क्वारंटीन रहना होगा और उसके फिर एक बार जांच करानी होगी। तब जांच अगर निगेटिव आती है तो फिर 7 दिन आपको खुद अपनी देखभाल करनी होगी। 12 देशों को रखा हाई रिस्क श्रेणी मेंकेंद्र सरकार ने 12 देशों की लिस्ट तैयार की है, जहां नए वैरिएंट का खतरा अधिक है। इनमें यूके समेत यूरोप के सभी देश, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, बांग्लादेश, बोत्सवाना, चीन, मॉरीशस, न्यूजीलैंड, जिम्बाब्वे, सिंगापुर, हांगकांग और इजराइल शामिल हैं। इन देशों के अलावा अन्य देशों से आने वाले यात्रियों को एयरपोर्ट से बाहर आने की अनुमति होगी. लिहाजा उन्हें 14 दिनों के लिए खुद ही निगरानी में रहना होगा। स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार नए वेरिएंट की चपेट में आए देशों के यात्रियों को आगमन के बाद कोरोना टेस्ट होगा। यात्रियों को टेस्ट के नतीजे की प्रतीक्षा करनी होगी। अगर टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आती है को वे 7 दिनों तक होम क्वारंटीन में रहेंगे। 8वें दिन दोबारा कोरोना टेस्ट करना होगा, अगर फिर रिपोर्ट नेगेटिव आती है कि तो अगले 7 दिनों के लिए स्वयं की निगरानी खुद करनी होगी। नई गाइडलाइंस के मुताबिक हाई रिस्क वाले देशों को छोड़कर अन्य देशों के यात्रियों को हवाई अड्डे से बाहर जाने की अनुमति होगी और 14 दिनों के लिए उनको खुद की निगरानी करनी होगी। कुल उड़ान यात्रियों का 5% आगमन पर हवाईअड्डे पर RT-PCR जांच से गुजरना पड़ेगा। एयरपोर्ट पर मौजूद एयरपोर्ट कर्मी टोटल यात्रियों का पांच फीसदी (किसी भी यात्री को रैंडमली) टेस्ट कर सकते हैं।


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मनीष तिवारी का अधीर रंजन पर पलटवार, शेयर कीं राजनाथ पर निशाना साधने वाले ट्वीट की तस्वीरें https://ift.tt/3rjcGX4

November 29, 2021
नई दिल्ली कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने अपनी आलोचना किए जाने के कुछ दिनों बाद रविवार को पार्टी के नेता पर पलटवार किया। उन्‍होंने चीन की घुसपैठ पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पर निशाना साधने वाले अपने ट्वीट के ‘स्क्रीनशॉट’ (तस्वीरें) साझा किए। लोकसभा में कांग्रेस के नेता चौधरी ने 26 नवंबर 2008 के मुंबई हमलों से संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) शासन के निपटने के तौर तरीकों की आलोचना करने को लेकर पिछले हफ्ते तिवारी पर प्रहार किया था। उन्‍होंने कहा था कि पूर्व केंद्रीय मंत्री ने यह मुद्दा उस वक्त नहीं उठाया, जब वह (संप्रग) सरकार का हिस्सा थे। चौधरी ने कहा था कि 26/11 हमलों (मुंबई हमलों) के बजाय तिवारी को चीन और भारत की सीमा पर उसकी हालिया गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। चौधरी पर पलटवार करते हुए तिवारी ने ट्वीट किया, ‘‘प्रिय अधीर दादा, उम्मीद करता हूं कि माननीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी को संबोधित ट्वीट के स्क्रीनशॉट आपकी चिंताओं और आलोचना को भी दूर कर देंगे।’’ उन्होंने रक्षा मंत्री सिंह को संबोधित अपने ट्वीट के स्क्रीनशॉट के साथ दिन में किए गए ट्वीट में कहा, ‘‘चीन की लगातार घुसपैठ और उन्हें राजग/भाजपा सरकार का जवाब मेरी पुस्तक का एक अहम हिस्सा है। ’’ मुंबई आतंकी हमलों के बाद संप्रग सरकार के प्रभावी कार्रवाई नहीं करने की बात कहने के लिए उनकी पुस्तक का सिंह की ओर से हवाला दिए जाने पर मीडिया में आई एक खबर को टैग करते हुए तिवारी ने ट्वीट किया, ‘‘माननीय राजनाथ जी, आपकी पार्टी में ट्रोल हैं, इसे मैं समझ सकता हूं लेकिन आपके रक्षा मंत्री होने के नाते मैं आपसे मेरी पुस्तक गंभीरता से पढ़ने का अनुरोध करना चाहूंगा, बशर्ते कि आप गंभीरता से सोचते हों कि सर्जिकल स्ट्राइक या बालाकोट हमले ने पाकिस्तान के बर्ताव में कोई ठोस बदलाव लाया है।’’ उन्होंने कहा कि सरकार से नियंत्रण के बाहर के तत्वों के खिलाफ पारंपरिक बल की प्रतिक्रिया का विषय भी बहस किए जाने योग्य है। उन्होंने कहा कि यहां तक कि आज भी यह उतना ही चुनौतीपूर्ण बना हुआ है, जितना 2008 में था। तिवारी ने सिंह को संबोधित सिलसिलेवार ट्वीट में कहा, ‘‘मैं इस पर और अप्रैल 2020 से जारी चीनी घुसपैठ पर आपके सरकार की प्रतिक्रिया पर भी काफी चर्चा करूंगा, जो दो दिसंबर 2021 को पुस्तक के औपचारिक लोकार्पण के बाद इसका एक अहम हिस्सा होगा। ’’ बाद में उन्होंने ट्वीट के स्क्रीनशॉट साझा किए और चौधरी पर पलटवार किया। तिवारी ने अपनी पुस्तक ‘10 फ्लैशप्वाइंट्स : 20 ईयर्स ’ में 26/11 हमलों से निपटने के तौर तरीकों को लेकर संप्रग सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि ‘संयम मजबूती का प्रतीक नहीं है’ और भारत को हमले के बाद ठोस कार्रवाई करनी चाहिए थी। उन्होंने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर भी प्रहार करते हुए आरोप लगाया कि ‘माउंटेन स्ट्राइक कोर’ को भंग करना सबसे बड़ा नुकसान है, जो भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को पहुंचाया है। तिवारी, कांग्रेस के 23 नेताओं के उस समूह में शामिल हैं, जिसने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिख कर पार्टी संगठन में नीचे से ऊपर तक बदलाव करने और कांग्रेस में हर पद के लिए चुनाव कराने की मांग की थी।


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मनीष तिवारी का अधीर रंजन पर पलटवार, शेयर कीं राजनाथ पर निशाना साधने वाले ट्वीट की तस्वीरें https://ift.tt/3rjcGX4 मनीष तिवारी का अधीर रंजन पर पलटवार, शेयर कीं राजनाथ पर निशाना साधने वाले ट्वीट की तस्वीरें
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कृषि कानून निरस्त करने वाले विधेयक पर लगेगी मुहर! यह है सरकार का प्‍लान https://ift.tt/3I1k6nJ

November 29, 2021
नई दिल्ली संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन लोकसभा से पारित किए जाने के बाद तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने वाले विधेयक को सोमवार को ही राज्यसभा में पेश किए जाने की संभावना है। सूत्रों ने रविवार को यह जानकारी दी। कृषि कानून निरसन विधेयक-2021 को लोकसभा में विचार किए जाने और पारित करने के लिए सूचीबद्ध किया गया है। सूत्रों ने कहा कि लोकसभा में विधेयक पारित होने के बाद इसे संसद के उच्च सदन में लाया जाएगा। विधेयक उन तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए है, जिनके खिलाफ किसान एक साल से अधिक समय से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। विधेयक के उद्देश्य और कारणों के कथन में कहा गया है कि ‘‘ऐसे में जब हम आजादी का 75वां वर्ष - 'आजादी का अमृत महोत्सव' मना रहे हैं, तो समय की जरूरत है कि सभी को समावेशी प्रगति और विकास के रास्ते पर साथ लिया जाए।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘उसके मद्देनजर, उपरोक्त कृषि कानूनों को निरस्त करने का प्रस्ताव है। आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (1955 का 10) की धारा 3 की उप-धारा (आईए) को हटाने का भी प्रस्ताव है, जिसे आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) अधिनियम, 2020 (2020 का 22), के तहत डाला गया था।’’ विपक्ष ने मांग की है कि सोमवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन विधेयक को लिया जाए।


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संसद में गूंज सकता है MSP पर कानून बनाने का मुद्दा, सर्वदलीय बैठक में विपक्षी दलों ने साफ किए अपने इरादे https://ift.tt/32zZH93

November 29, 2021
नई दिल्ली सोमवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र से पहले रविवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में सभी दलों ने सरकार से किसानों के उत्पादों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी को लेकर तत्काल कानून बनाने के संबंध में कदम उठाने की मांग की। सर्वदलीय बैठक में अधिकतर विपक्षी दलों ने पेगासस जासूसी विवाद, महंगाई, किसानों, बेरोजगारी, लद्दाख में चीन के अतिक्रमण सहित कुछ अन्य मुद्दों को उठाया और चर्चा कराने की मांग की। विपक्षी दलों ने सरकार को रचनात्मक मुद्दों पर सकारात्मक सहयोग देने का आश्चासन दिया । बैठक के बाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, ‘ सर्वदलीय बैठक में 15-20 महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई। सभी दलों ने मांग की कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने पर सरकार तुरंत ध्यान दे।’ खड़गे ने कहा, ‘ हम सरकार को सहयोग करना चाहते हैं । अच्छे विधेयक आयेंगे, तब हम सरकार का सहयोग करेंगे । अगर हमारी बात नहीं मानी (चर्चा को लेकर) गई, तब सदन में व्यवधान की जिम्मेदारी सरकार की होगी।’ उन्होंने कहा कि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को मुआवजा देने का विषय तथा महंगाई, पेट्रोल-डीजल एवं वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ तनाव का मुद्दा भी बैठक में उठा। उन्होंने कहा कि इसके अलावा बिजली संशोधन विधेयक पर भी सरकार से ध्यान देने को कहा गया है । समझा जाता है कि बैठक में सरकार की ओर से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने के लिये विपक्ष का सहयोग मांगा और कहा कि सरकार नियमों के तहत अध्यक्ष एवं सभापति की अनुमति से सभी मुद्दों पर चर्चा कराने को तैयार है। खड़गे ने कहा, ‘हम अपेक्षा कर रहे थे कि बैठक में प्रधानमंत्री आएंगे, लेकिन किसी कारण से वह नहीं आए।’ उन्होंने कहा, ‘हम प्रधानमंत्री से कृषि कानूनों को लेकर कुछ बातों पर स्थिति स्पष्ट करना चाहते थे।’ खड़गे ने कहा कि प्रधानमंत्री ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की और माफी मांगते हुए कहा कि वे किसानों को समझा नहीं पाये। कांग्रेस नेता ने कहा, ‘इसका अर्थ यह है कि कल किसी दूसरे रूप में इन कानूनों को लाया जायेगा, हम इस पर स्थिति स्पष्ट करना चाहते थे।’ सर्वदलीय बैठक में 31 दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया। बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उपस्थित नहीं थे। वहीं, संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने संवाददाताओं को बताया, ‘सर्वदलीय बैठक में विभिन्न दलों के 42 नेताओं ने हिस्सा लिया। इसमें विभिन्न विषयों पर रचनात्मक चर्चा हुई और विपक्ष की ओर से कुछ अच्छे सुझाव आए।’उन्होंने कहा कि सरकार विपक्ष के सकारात्मक सुझावों पर विचार करने और नियमों के तहत अध्यक्ष एवं सभापति की अनुमति से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कराने को तैयार है। जोशी ने कहा, ‘हमने अपील की है कि सदन में बिना किसी व्यवधान के कामकाज हो। विपक्ष ने भी आश्वस्त किया है कि वे सदन को सुचारू रूप से चलाने में सहयोग करेंगे।’ प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति पर एक सवाल के जवाब में जोशी ने कहा कि ऐसी सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री के हिस्सा लेने का चलन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के आने के बाद से शुरू हुआ है, पहले ऐसी बात नहीं थी। वहीं, वाईएसआर कांग्रेस ने सरकार से मांग की कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को विधायी समर्थन प्रदान करने के संबंध में विभिन्न पक्षकारों के साथ चर्चा करने के लिये संसद की संयुक्त समिति बनायी जानी चाहिए । वाईएसआर कांग्रेस के राज्यसभा में नेता विजय साई रेड्डी ने कहा कि उनकी पार्टी ने यह भी मांग की कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के दायरे में समुद्री एवं कुक्कुट उत्पादों को भी लाया जाना चाहिए। सूत्रों ने बताया कि तृणमूल कांग्रेस, वाईएसआर कांग्रेस और द्रमुक ने सुझाव दिया कि सोमवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान महिला आरक्षण संबंधी विधेयक चर्चा के लिये लाया जाए। इन दलों ने कहा कि यह सही वक्त है जब देश के नीति निर्माण के कार्यो में महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए। विपक्षी नेताओं ने पश्चिम बंगाल सहित कुछ राज्यों में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का अधिकार क्षेत्र बढ़ाए जाने और संघीय ढांचे का मुद्दा भी उठाया। समझा जाता है कि तृणमूल कांग्रेस के नेताओं-सुदीप बंदोपाध्याय और डेरेक ओ ब्रायन ने लाभकारी सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून लाने का मुद्दा भी उठाया। बैठक में तृणमूल कांग्रेस ने 10 बिन्दुओं को उठाया, जिसमें महंगाई, बेरोजगारी, संघीय ढांचे का मुद्दा, मुनाफा कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का विनिवेश, कुछ राज्यों में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का अधिकार क्षेत्र बढ़ाए जाने, संघीय ढांचे, कोविड-19 की स्थिति तथा महिला आरक्षण विधेयक आदि का मुद्दा शामिल है । वहीं, आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह बीच में ही बैठक छोड़कर बाहर निकल गए। सिंह ने संवाददाताओं से कहा कि वे बैठक में किसानों, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने के विषय को उठा रहे थे, लेकिन बीच में ही टोका-टोकी की गई। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि बैठक में कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका के बारे में भी चर्चा हुई। उन्होंने कहा, ‘‘ हमने सरकार से मांग की है कि कोविड महामारी के कारण जान गंवाने वालों को 4 लाख रूपये का मुआवजा दिया जाए। इसके अलावा तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को भी मुआवजा दिया जाए।’ दरअसल संसद का शीतकालीन सत्र सोमवार 29 नवंबर से शुरू होकर 23 दिसंबर तक चलेगा।


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संसद में गूंज सकता है MSP पर कानून बनाने का मुद्दा, सर्वदलीय बैठक में विपक्षी दलों ने साफ किए अपने इरादे https://ift.tt/32zZH93 संसद में गूंज सकता है MSP पर कानून बनाने का मुद्दा, सर्वदलीय बैठक में विपक्षी दलों ने साफ किए अपने इरादे
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कोरोना के नए खतरे को देख विदेश से आने वालों के लिए बदले नियम, नई गाइडलाइन जारी https://ift.tt/3reciJh

November 28, 2021
नई दिल्ली कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमीक्रोन के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने विदेश से आने वाले लोगों के लिए नई गाइडलाइंस जारी की है। केंद्रीय 1 दिसंबर से प्रभावी होने जा रही है। इसके तरह भारत में अंतरराष्ट्रीय आगमन के लिए दिशानिर्देशों में संशोधन किया गया है। यात्रा से पहले एयर सुविधा पोर्टल पर आपको निगेटिव आरटी-पीसीआर परीक्षण रिपोर्ट अपलोड करने के साथ-साथ अपने 14 दिनों की यात्रा विवरण जमा करना होगा। स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार नए वेरिएंट की चपेट में आए देशों के यात्रियों को आगमन के बाद कोरोना टेस्ट होगा। यात्रियों को टेस्ट के नतीजे की प्रतीक्षा करनी होगी। अगर टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आती है को वे 7 दिनों तक होम क्वारंटीन में रहेंगे। 8वें दिन दोबारा कोरोना टेस्ट करना होगा, अगर फिर रिपोर्ट नेगेटिव आती है कि तो अगले 7 दिनों के लिए स्वयं की निगरानी खुद करनी होगी। नई गाइडलाइंस के मुताबिक हाई रिस्क वाले देशों को छोड़कर अन्य देशों के यात्रियों को हवाई अड्डे से बाहर जाने की अनुमति होगी और 14 दिनों के लिए उनको खुद की निगरानी करनी होगी। कुल उड़ान यात्रियों का 5% आगमन पर हवाईअड्डे पर RT-PCR जांच से गुजरना पड़ेगा। एयरपोर्ट पर मौजूद एयरपोर्ट कर्मी टोटल यात्रियों का पांच फीसदी (किसी भी यात्री को रैंडमली) टेस्ट कर सकते हैं।


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कोरोना के नए खतरे को देख विदेश से आने वालों के लिए बदले नियम, नई गाइडलाइन जारी https://ift.tt/3reciJh कोरोना के नए खतरे को देख विदेश से आने वालों के लिए बदले नियम, नई गाइडलाइन जारी
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पतियों की पिटाई से 30 प्रतिशत से अधिक महिलाओं को 'दर्द' नहीं, सर्वे में खुलासा https://ift.tt/3lfNQnj

November 28, 2021
नयी दिल्लीअठ्ठारह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 14 से 30 प्रतिशत से अधिक महिलाओं ने पतियों द्वारा कुछ परिस्थितियों में अपनी पत्नियों की पिटायी किये जाने को सही ठहराया, जबकि कम प्रतिशत पुरुषों ने इस तरह के व्यवहार को तर्कसंगत बताया। यह बात राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के एक सर्वेक्षण में सामने आयी। इन राज्यों में चौंकाने वाले रिजल्टएनएफएचएस-5 के अनुसार, तीन राज्यों - तेलंगाना (84 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश (84 प्रतिशत) और कर्नाटक (77 प्रतिशत) की 75 प्रतिशत से अधिक महिलाओं ने पुरुषों द्वारा अपनी पत्नियों की पिटायी को सही ठहराया। वहीं मणिपुर (66 फीसदी), केरल (52 फीसदी), जम्मू कश्मीर (49 फीसदी), महाराष्ट्र (44 फीसदी) और पश्चिम बंगाल (42 फीसदी), ऐसे अन्य राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं जहां बड़ी संख्या में महिलाओं ने पुरुषों द्वारा अपनी पत्नियों की पिटायी को जायज ठहराया। पति से पिटाई का क्या कारण?सर्वेक्षण ने उन संभावित परिस्थितियों को सामने रखा जिनमें एक पति अपनी पत्नी की पिटायी करता है: यदि उसे उसके विश्वासघाती होने का संदेह है, अगर वह ससुराल वालों का अनादर करती है, अगर वह उससे बहस करती है, अगर वह उसके साथ यौन संबंध बनाने से इनकार करती है, अगर वह उसे बताये बिना बाहर जाती है, अगर वह घर या बच्चों की उपेक्षा करती है, अगर वह अच्छा खाना नहीं बनाती है। पिटाई को सही ठहराने के पीछे क्या कारणउत्तरदाताओं द्वारा पिटायी को सही ठहराने के लिए सबसे आम कारण घर या बच्चों की उपेक्षा करना और ससुराल वालों के प्रति अनादर दिखाना था। 18 राज्यों में से 13-हिमाचल प्रदेश, केरल, मणिपुर, गुजरात, नागालैंड, गोवा, बिहार, कर्नाटक, असम, महाराष्ट्र, तेलंगाना, नागालैंड और पश्चिम बंगाल में महिला उत्तरदाताओं ने ‘ससुराल वालों के प्रति अनादर' का उल्लेख पिटायी को सही ठहराने के मुख्य कारण के तौर पर किया। कोविड -19 के दौरान यौन शोषण और घरेलू हिंसा में वृद्धिपतियों द्वारा पिटायी को जायज ठहराने वाली महिलाओं की सबसे कम संख्या हिमाचल प्रदेश (14.8 फीसदी) में थी। पुरुषों में, कर्नाटक के 81.9 प्रतिशत उत्तरदाताओं और हिमाचल प्रदेश में 14.2 प्रतिशत ने ऐसे व्यवहार को उचित बताया। हैदराबाद स्थित एनजीओ 'रोशनी' की निदेशक उषाश्री ने कहा कि उनके संगठन ने कोविड -19 के दौरान यौन शोषण और घरेलू हिंसा में वृद्धि देखी है। ‘रोशनी’ भावनात्मक संकट में लोगों को परामर्श और अन्य सेवाएं प्रदान करती है।


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पतियों की पिटाई से 30 प्रतिशत से अधिक महिलाओं को 'दर्द' नहीं, सर्वे में खुलासा https://ift.tt/3lfNQnj पतियों की पिटाई से 30 प्रतिशत से अधिक महिलाओं को 'दर्द' नहीं, सर्वे में खुलासा
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ओमीक्रोन वेरिएंट के कारण अब 15 दिसंबर से इंटरनेशनल फ्लाइट चालू होने पर संशय, सरकार हालात देखकर लेगी फैसला https://ift.tt/3CUIt2R

November 28, 2021
नई दिल्ली कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रोन (Coronavirus New Variant omicron) के बढ़ते टेंशन के बीच अब अंतरराष्ट्रीय उड़ानों () को फिर से शुरू करने वाले फैसले पर रोक लग सकती है। गृह मंत्रालय ने स्वास्थ्य और नागरिक उड्डयन जैसे अन्य मंत्रालयों के साथ कोविड स्थिति की समीक्षा करने के बाद रविवार को एक बयान में कहा कि ताजा हालात को देखते हुए वाणिज्यिक अंतरराष्ट्रीय यात्री सेवा को फिर से शुरू करने की प्रभावी तिथि पर फिर से विचार किया जाएगा। पूरे विश्व में अलर्टसाउथ अफ्रीका समेत कुछ देशों में कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रोन के मिलने के बाद पूरे विश्व में सतर्कता बरती जा रही है। कुछ देशों ने विदेश नागरिकों की इंट्री पूरी तरह से बैन कर दी है। वहीं कही देशों में कोविड प्रोटोकॉल फिर से शुरू हो चुके हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे ओमीक्रोन को लेकर सख्ती से क्वारैंटाइन और आइसोलेशन लागू करें। ओमीक्रोन को वैरिएंट ऑफ कंसर्न- सरकारसरकार ने ओमीक्रोन को वैरिएंट ऑफ कंसर्न बताते हुए उन्होंने कहा कि ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग करें और हॉटस्पॉट्स पर निगरानी बढ़ाएं। उन्होंने वैक्सीनेशन का दायरा बढ़ाने के बारे में भी निर्देश दिए हैं। राजेश भूषण ने कहा कि इंटरनेशनल फ्लाइ‌ट्स के जरिए आने वाले यात्रियों की पिछली हवाई यात्राओं के बारे में जानकारी हासिल करने की एक प्रक्रिया है और इसे राज्यों के स्तर पर देखा जाना चाहिए। राज्यों को कोशिश करनी चाहिए कि पॉजिटिविटी रेट 5% से नीचे रहे। पीएम मोदी ने कहा था दोबारा विचार करने कोपीएम मोदी ने शनिवार को नए म्यूटेंट के मद्देनजर निर्धारित अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को फिर से शुरू करने की समीक्षा का आदेश दिया था। कई देशों ने दक्षिणी अफ्रीकी देशों के लिए अस्थायी रूप से उड़ानें निलंबित कर दी हैं। इजरायल सभी विदेशी यात्रियों के लिए अपनी सीमाएं बंद कर रहा है। यूके ने 30 नवंबर से शुरू होने वाले सभी अंतरराष्ट्रीय आगमन के लिए आरटी-पीसीआर परीक्षण अनिवार्य कर दिया है। दिल्ली एयरपोर्ट पर सख्त निर्देशकोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन के डर से दिल्ली एयरपोर्ट पर सख्त दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। ओमिक्रॉन के तीन हॉटस्पॉट क्षेत्रों- दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे और हॉन्गकॉन्ग- से आने वाले यात्रियों को दिल्ली एयरपोर्ट पर RT-PCR टेस्ट कराना होगा और उसकी रिपोर्ट का इंतजार करना होगा। जिन पर्यटकों की रिपोर्ट निगेटिव आएगी सिर्फ उन्हें ही बाहर निकलने दिया जाएगा। कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट वाले पर्यटकों को कोविड सेंटर भेजा जाएगा। खतरे वाले उन्य देशों से आने पर्यटकों का सैंपल लिया जाएगा और उन्हें मोबाइल या ईमेल पर रिजल्ट भेजा जाएगा। एम्स चीफ ने खतरे से किया आगाहकोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमीक्रोन का पहला मामला साउथ अफ्रीका से आने के बाद अब ये दुनिया के कई देशों तक पहुंच गया है। हालांकि समय रहते कई देशों ने इस वायरस से प्रभावित देशों के आवागमन पर रोक लगा दी है। भारत में भी इसको लेकर सतर्कता बढ़ा दी गई है। ओमीक्रोन वायरस को लेकर AIIMS प्रमुख डॉ. रणदीप गुलेरिया (AIIMS Director Dr Randeep Guleria) ने आशंका व्यक्त की है कि इस वेरिएंट के स्पाइक एरिया में 30 से ज्यादा म्यूटेशन के कारण वैक्सीन की प्रभावशीलता भी कम हो सकती है। कुछ दिन पहले ही हुआ था फैसलाभारत आने-जाने वाली सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानें कोविड-19 महामारी के कारण 23 मार्च, 2020 से ही बंद हैं। हालांकि, पिछले साल जुलाई से करीब 28 देशों के साथ हुए एयर बबल समझौते के तहत विशेष अंतरराष्ट्रीय यात्री उड़ानें संचालित हो रही हैं। नागर विमानन मंत्रालय ने एक आदेश में कहा था कि भारत आने-जाने वाली अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक यात्री उड़ानों को फिर से शुरू करने के संबंध में फैसला गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की सलाह से लिया गया है। सभी ने मिलकर भारत ये आने-जाने वाली अंतरराष्ट्रीय यात्री उड़ानों को 15 दिसंबर से फिर से शुरू करने का निर्णय किया है।’


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ओमीक्रोन वेरिएंट के कारण अब 15 दिसंबर से इंटरनेशनल फ्लाइट चालू होने पर संशय, सरकार हालात देखकर लेगी फैसला https://ift.tt/3CUIt2R ओमीक्रोन वेरिएंट के कारण अब 15 दिसंबर से इंटरनेशनल फ्लाइट चालू होने पर संशय, सरकार हालात देखकर लेगी फैसला
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ओमीक्रोन के 30 से ज्यादा म्यूटेशन, वैक्सीन का प्रभाव भी हो सकता है कम...एम्स चीफ गुलेरिया का दावा https://ift.tt/3p7mC39

November 28, 2021
नई दिल्ली कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमीक्रोन का पहला मामला साउथ अफ्रीका से आने के बाद अब ये दुनिया के कई देशों तक पहुंच गया है। हालांकि समय रहते कई देशों ने इस वायरस से प्रभावित देशों के आवागमन पर रोक लगा दी है। भारत में भी इसको लेकर सतर्कता बढ़ा दी गई है। ओमीक्रोन वायरस को लेकर AIIMS प्रमुख डॉ. रणदीप गुलेरिया (AIIMS Director Dr Randeep Guleria) ने आशंका व्यक्त की है कि इस वेरिएंट के स्पाइक एरिया में 30 से ज्यादा म्यूटेशन के कारण वैक्सीन की प्रभावशीलता भी कम हो सकती है। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि इस वेरिएंट के स्पाइक प्रोटीन एरिया में 30 से भी ज्यादा म्यूटेशन हो चुके हैं, जिसके चलते यह वैक्सीन को भी चकमा दे सकता है। उन्होंने बताया कि अधिकांश टीके स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ एंटीबॉडी बनाकर काम करते हैं, इसलिए स्पाइक प्रोटीन क्षेत्र में इतने सारे परिवर्तन से कोविड-19 टीकों की प्रभावशीलता कम हो सकती है। वैक्सीन कितनी कारगर, गंभीरता से जांच होनी चाहिए- गुलेरियाडॉ. गुलेरिया ने कहा है कि इस नए वेरिएंट में वैक्सीन कितना कारगर है ऐसे में इसकी गंभीरता से जांच होनी चाहिए। स्पाइक प्रोटीन की उपस्थिति पोषक कोशिका में वायरस के प्रवेश को आसान बनाती है और इसे फैलने देने और संक्रमण पैदा करने के लिए जिम्मेदार है। एम्स के निदेशक डॉ गुलेरिया ने बताया कि कोरोना वायरस के नए स्वरूप में स्पाइक प्रोटीन क्षेत्र में कथित तौर पर 30 से अधिक उत्परिवर्तन हुए हैं और इसलिए इसके प्रतिरक्षा तंत्र से बच निकलने की क्षमता विकसित करने की संभावना है। भारत सरकार रख रही है हर स्थिति पर पैनी नजरउन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में, भारत में प्रयुक्त होने सहित अन्य टीकों की प्रभावशीलता का गंभीर मूल्यांकन करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भविष्य की कार्रवाई इस बात पर निर्भर करेगी कि इसके प्रसार, तीव्रता और प्रतिरक्षण क्षमता से बच निकलने के सामर्थ्य पर अधिक जानकारी में क्या सामने आता है। अधिकारियों ने कहा कि भारतीय सार्स-सीओवी-2 जीनोमिक कंसोर्टिया इनसाकोग कोरोना वायरस के नए स्वरूप बी.1.1.1.529 पर बारीकी से नज़र रख रहा है और देश में इसकी उपस्थिति का अभी तक पता नहीं चला है। दोनों डोज टीके और कोरोना बचाव नियमडॉ गुलेरिया ने अंतरराष्ट्रीय यात्रियों और उस क्षेत्र में जहां मामलों की संख्या में अचानक वृद्धि हुई है, दोनों के लिए बहुत सतर्क रहने और आक्रामक निगरानी रखने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि साथ ही, हमें सभी से इमानदारी से कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन करने के लिए कहना चाहिए और अपनी सुरक्षा को कम नहीं करना चाहिए। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि लोगों को टीके की दोनों खुराकें मिलें और जिन लोगों ने अभी तक टीका नहीं लिया है, उन्हें इसे लेने के लिए आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। खुद से समझनी होगी जिम्मेदारीडॉ गुलेरिया ने अंतरराष्ट्रीय यात्रियों और उस क्षेत्र में जहां मामलों की संख्या में अचानक वृद्धि हुई है, दोनों के लिए बहुत सतर्क और आक्रामक निगरानी रखने की आवश्यकता पर जोर दिया है। उन्होंने कहा है कि इसके अलावा हमें कोरोना बचाव के सभी उपायों का पालन करना चाहिए। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लोगों को टीके की दोनों खुराक लग चुकी हैं या नहीं। जिन्होंने अभी तक दोनों डोज नहीं ली हैं, उन्हें आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। केंद्र सरकार अलर्टकेंद्र सरकार ने गुरुवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से दक्षिण अफ्रीका, हांगकांग और बोत्सवाना से आने या जाने वाले सभी अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की कठोर जांच और परीक्षण करने को कहा है। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अतिरिक्त मुख्य सचिव / प्रधान सचिव / सचिव (स्वास्थ्य) को लिखे पत्र में, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने उनसे यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि सकारात्मक होने वाले यात्रियों के नमूने नामित जीनोम अनुक्रमण प्रयोगशालाओं को तुरंत भेजे जाएं।


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ओमीक्रोन के 30 से ज्यादा म्यूटेशन, वैक्सीन का प्रभाव भी हो सकता है कम...एम्स चीफ गुलेरिया का दावा https://ift.tt/3p7mC39 ओमीक्रोन के 30 से ज्यादा म्यूटेशन, वैक्सीन का प्रभाव भी हो सकता है कम...एम्स चीफ गुलेरिया का दावा
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MSP, किसान, पेगासस... संसद सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक में गूंजे कई मुद्दे, बीच में उठकर चले गए AAP सांसद https://ift.tt/3d2aP0h

November 28, 2021
नई दिल्लीसोमवार से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र से पहले केंद्र सरकार ने सभी दलों की बैठक बुलाई। इस बार बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल नहीं हुए। वहीं आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह सर्वदलीय बैठक को बीच में छोड़कर चले गए। बैठक के दौरान ज्यादातर विपक्षी दलों ने पेगासस जासूसी विवाद, महंगाई, किसानों, न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी को लेकर कानून बनाए जाने, बेरोजगारी, लद्दाख में चीन के अतिक्रमण सहित कुछ अन्य मुद्दों पर चर्चा किए जाने की मांग की। विपक्ष ने सरकार को रचनात्मक मुद्दों पर सकारात्मक सहयोग देने का आश्चासन दिया । सरकार ने विपक्षी दलों को भरोसा दिया कि वह विपक्ष के सकारात्मक सुझावों पर विचार करने और नियमों के तहत अध्यक्ष एवं सभापति की अनुमति से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कराने को तैयार है। सर्वदलीय बैठक में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, पीयूष गोयल, संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी के अलावा राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, कांग्रेस नेता आनंद शर्मा, तृणमूल कांग्रेस के नेता सुदीप बंदोपाध्याय, डेरेक ओ ब्रायन, द्रमुक नेता टी आर बालू, समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव, बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्र, बीजद के प्रसन्न आचार्य, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला, शिवसेना नेता विनायक राउत आदि मौजूद थे। बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूद नहीं थे। बैठक के बाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, ‘सर्वदलीय बैठक में 15-20 महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई। सभी दलों ने मांग की कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने पर सरकार तुरंत ध्यान दे।’ उन्होंने कहा कि इसके अलावा बिजली संशोधन विधेयक पर भी सरकार से ध्यान देने को कहा गया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने उनसे कहा कि कुछ विधेयकों को पेश करने के बाद वह उसे संसद की स्थायी समिति को भेजना चाहती है और इस बारे में कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में तय हो जाएगा। खड़गे ने कहा, ‘हम सरकार का सहयोग करना चाहते हैं। अच्छे विधेयक आयेंगे, तब हम सरकार का सहयोग करेंगे। अगर हमारी बात नहीं मानी (चर्चा को लेकर) गई, तब सदन में व्यवधान की जिम्मेदारी सरकार की होगी।’ कांग्रेस नेता खड़गे ने कहा कि बैठक में कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका के बारे में भी चर्चा हुई । उन्होंने कहा, ‘हमने सरकार से मांग की है कि कोविड महामारी के कारण जान गंवाने वालों को 4 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। इसके अलावा तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को भी मुआवजा दिया जाए।’ खड़गे ने कहा, ‘हम अपेक्षा कर रहे थे कि बैठक में प्रधानमंत्री आएंगे, लेकिन किसी कारण से वह नहीं आए।’ उन्होंने कहा, ‘हम प्रधानमंत्री से कृषि कानूनों को लेकर कुछ बातों पर स्थिति स्पष्ट करना चाहते थे।’’ संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने संवाददाताओं का बताया, ‘सर्वदलीय बैठक में विभिन्न दलों के 42 नेताओं ने हिस्सा लिया। इसमें विभिन्न विषयों पर रचनात्मक चर्चा हुई और विपक्ष की ओर से कुछ अच्छे सुझाव आए।’ उन्होंने कहा कि सरकार विपक्ष के सकारात्मक सुझावों पर विचार करने और नियमों के तहत अध्यक्ष एवं सभापति की अनुमति से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कराने को तैयार है। जोशी ने कहा, ‘हमने अपील की है कि सदन में बिना किसी व्यवधान के कामकाज हो। विपक्ष ने भी आश्वस्त किया है कि वे सदन को सुचारू रूप से चलाने में सहयोग करेंगे।’ वहीं, आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह बीच में ही बैठक छोड़कर बाहर निकल गए। सिंह ने संवाददाताओं से कहा कि वे बैठक में किसानों, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने के विषय को उठा रहे थे, लेकिन बीच में ही टोका-टोकी की गई। सिंह ने आरोप लगाया कि कि संसद में भी नहीं बोलने दिया जाता है और यहां बैठक में भी टोका-टोकी की गई। ऐसे में बैठक में रहने का कोई अर्थ नहीं है। विपक्षी नेताओं ने पश्चिम बंगाल सहित कुछ राज्यों में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का अधिकार क्षेत्र बढ़ाए जाने, संघीय ढांचे तथा महिला आरक्षण विधेयक का मुद्दा भी उठाया। समझा जाता है कि तृणमूल कांग्रेस के नेताओं-सुदीप बंदोपाध्याय और डेरेक ओ ब्रायन ने लाभकारी सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून लाने का मुद्दा भी उठाया। बैठक में तृणमूल कांग्रेस ने 10 बिन्दुओं को उठाया, जिसमें महंगाई, बेरोजगारी, संघीय ढांचे का मुद्दा, मुनाफा कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेश, कुछ राज्यों में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का अधिकार क्षेत्र बढ़ाए जाने, संघीय ढांचे, कोविड-19 की स्थिति तथा महिला आरक्षण विधेयक आदि का मुद्दा शामिल है। संसद का शीतकालीन सत्र सोमवार 29 नवंबर से शुरू होकर 23 दिसंबर तक चलेगा।


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1971 : इंदिरा गांधी के आगे फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को नीचा दिखाने की कोशिश ठीक नहीं https://ift.tt/3dbPFgF

November 28, 2021
नई दिल्ली हाल में दो ऐसी किताबें आईं हैं जिनमें 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की चर्चा है। बात इसकी छिड़ेगी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और तब के सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ (बाद में फील्ड मार्शल बने) के बिना तो अधूरी ही रहेगी। क्या इन दोनों में से किसी के भी किरदार को जानबूझकर छोटा या बड़ा दिखाने की कोशिश ठीक कही जाएगी? एयर वाइस मार्शल (रिटायर्ड) अर्जुन सुब्रमण्यन ने लेख के जरिए दोनों ही किताबों पर फील्ड मार्शल मानेकशॉ को नीचा दिखाने की कोशिश का आरोप लगाया है। इनमें से एक किताब एक पूर्व केंद्रीय मंत्री ने लिखी है तो दूसरी किताब एक पूर्व राजनयिक ने। बात हो रही है 'इंटरविन्ड लाइव्स: पीएन हक्सर ऐंड इंदिरा गांधी' और 'इंडिया ऐंड द बांग्लादेश लिबरेशन वॉर: द डिफिनिटिव स्टोरी' की। एक किताब इंदिरा गांधी पर है तो दूसरी का शीर्षक ही भारत और बांग्लादेश मुक्ति संग्राम है। पहली के लेखक हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के सीनियर नेता जयराम रमेश। तो दूसरी को लिखी है चन्द्रशेखर दासगुप्ता ने। अर्जुन सुब्रमण्यम ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखे अपने लेख में मानेकशॉ की भूमिका को कमतर आंके जाने के खिलाफ आगाह किया है। इंदिरा गांधी अप्रैल-मई 1971 में ही पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य अभियान शुरू करना चाहती थीं लेकिन आर्मी चीफ मानेकशॉ की सलाह पर उन्होंने इसमें देरी की। सुब्रमण्यम के मुताबिक दोनों ही किताबों में इस बड़े पैमाने पर स्वीकृत नैरेटिव को चुनौती दी गई है। सैम मानेकशॉ ने इंदिरा गांधी को दो टूक कहा था कि अगर हम जल्दबाजी में सैन्य अभियान लॉन्च करते हैं तो मॉनसून तक ही हमारी स्थिति डंवाडोल हो सकती है। सुब्रमण्यम ने लिखा है कि कई सैन्य इतिहासकारों और सेना के पूर्व अफसरों की किताबों में इस तथ्य को रखा गया है। उन्होंने लिखा है कि हर एक सैन्य इतिहासकार ने 1971 की शानदार जीत में इंदिरा गांधी की निर्णायक भूमिका को मान्यता दी है लेकिन यह भी सच है कि यह किसी एक के प्रयासों का नतीजा नहीं था। भारत ने अप्रैल-मई के बजाय 3 दिसंबर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान में अपना सैन्य अभियान शुरू किया। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के समर्पण और बांग्लादेश की मुक्ति के साथ यह सैन्य अभियान अपने मकसद में पूरा हुआ। सुब्रमण्यम ने लिखा है कि जयराम रमेश और चन्द्रशेखर दासगुप्ता ने किताब में पीएन हक्सर और पीएन धर के संस्मरणों का इस्तेमाल किया है। हक्सर और धर दोनों ही इंदिरा गांधी के करीबी और सलाहकार थे। 1971 की जंग में मिली शानदार जीत को इंदिरा गांधी कूटनीतिक तौर पर नहीं भुना पाई। जंग के मैदान में जो हासिल हुआ उसे 1972 में शिमला में बातचीत की मेज पर एक तरह से गंवा दिया गया। इससे इंदिरा की छवि को नुकसान न पहुंचे, इसलिए हक्सर और धर दोनों ने यह स्थापित करने के लिए खूब मेहनत की कि 1971 का सैन्य अभियान सिर्फ और सिर्फ इंदिरा की कामयाबी थी। सुब्रमण्यन ने लिखा है कि हक्सर और धर के संस्मरणों के प्रभाव से दोनों ही किताबों में मानेकशॉ की भूमिका को कमतर आंका गया है। अर्जुन सुब्रमण्यम ने लिखा है कि दासगुप्ता ने अपनी किताब में यह कहने की कोशिश की है कि मानेकशॉ में जियोपॉलिटिक्स की समझ की कमी थी। यह उसी पूर्वाग्रह का नतीजा है कि 'जनरलों को जंग लड़ने के अलावा कुछ भी नहीं आता।' इसी तरह, जयराम रमेश ने आर्मी अफसरों की लिखी किताबों में झांकने तक की कोशिश नहीं की। सुब्रमण्यम ने कहा है कि इंडियन आर्मी ने महत्वपूर्ण चर्चाओं को मिनट्स में रिकॉर्ड नहीं किया, जबकि ऐसा होना चाहिए था।


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Gad

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